31 अक्टूबर, 2022 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर विशेष
देश की रियासतों को एक सूत्र में पिरोने वाले लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल
सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत माता के सच्चे सिपाही थे, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संघर्ष में न केवल महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वरन् देश के स्वतंत्र होने के बाद भी देश को एकता के सूत्र में सफलतापूर्वक पिरोये रखा। पटेल सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे, जिनका व्यक्तित्व आदर्शों तथा नैतिक गुणों से भरपूर था तथा उन्होंने देश की एकता, अखण्डता तथा स्वतंत्रता के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था। स्वतंत्रता संघर्षों में अग्रणी यौद्धा, देशभक्त के रूप में भारत की जनता पटेल को लौहपुरूष तथा सरदार के नाम से आदर-सम्मान देती है। 31 अक्टूबर, 1875 को जन्मे पटेल पर अपने पिता की वीरता व संस्कारों का बहुत प्रभाव पड़ा। उनमें बाल्यकाल से ही निर्भयता व साहस का अद्भुत गुण था तथा वे गलत आचरण को सहन नहीं करते थे। उन्होंने स्कूल समय में भी स्कूल अध्यापक द्वारा छात्रों को पुस्तकें खरीदने के लिए बाध्य करने पर उनका विरोध किया तथा विद्यालय में हड़ताल करवा दी। अंत में अध्यापक को पराजय स्वीकार करनी पड़ी और पुस्तकों को खरीदने का दबाव समाप्त हो गया।
पटेल ने लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई की तथा अहमदाबाद में वकालत शुरू की। वल्लभ पटेल में धैर्य, संयम व कर्तव्यपरायणता का गुण कूट-कूटकर भरा हुआ था। एक बार वकालत काल के दौरान बोरसद में एक मुकदमें में बहस करते समय उन्हें पत्नी की मृत्यु का समाचार मिलने पर भी, वे जरा भी विचलित नहीं हुए तथा बहस पूरी होने के बाद ही पत्नी के देहांत के बारे में लोगों को बताया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल के मन में जनता के दुख-दर्द के प्रति अपार संवेदना का भाव था। उन्होंने अहमदाबाद में प्लेग की भयंकर बीमारी फैलने पर प्लेग की रोकथाम के लिए जनता की दिन-रात सेवा की। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने गांधीजी के साथ मिलकर गैरकानूनी बेगार प्रथा को समाप्त करवाया। उन्होंने सन् 1919 में सत्याग्रह नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। खेड़ा सत्याग्रह के समय वल्लभ भाई ने कोट, पेंट, टाई त्याग करके किसानों की पोशाक पहनकर उनके साथ काम किया। अहमदाबाद की प्रसिद्ध कपड़ा मिल मजदूर हड़ताल में उन्होंने गांधीजी के साथ काम किया तथा गुजरात विद्यापीठ संस्थान के लिए सरदार पटेल ने दस लाख रूपये जमा किये। वल्लभ पटेल ने नागपुर के झण्डा सत्याग्रह का कुशल नेतृत्व किया तथा अंत में सरकार को समझौते के लिए झुकना पड़ा।
वल्लभ भाई ने अहमदाबाद नगर पालिका में चेयरमैन की भूमिका को बखूबी निभाया तथा जनता की अभूतपूर्व सेवा की। 1927 में गुजरात में आई भीषण बाढ़ में उन्होंने जनता की तन-मन-धन से खूब सेवा की, चंदा एकत्रित किया और साथियों के साथ मिलकर हजारों मनुष्यों को मरने से बचाया। बारडोली का सत्याग्रह 1927 में हुआ, जिसमें किसानों पर सरकार ने लगान की दर बढ़ा दी। वल्लभ पटेल के महीनों तक प्रयासों द्वारा सरकार को झुकना पड़ा। इसी सफलता के कारण गांधीजी ने वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि दी।
सन् 1929 में लाहौर में पूर्ण स्वराज्य की मांग उठाई गई। गांधीजी द्वारा प्रारम्भ सत्याग्रह (डांडी यात्रा, नमक कानून को तोडऩे) में सरदार पटेल ने बढ़-चढक़र भाग लिया तथा पटेल को तीन माह की कैद व पांच सौ रूपये का जुर्माना हुआ। जुर्माना न अदा करने पर पटेल तीन सप्ताह तक कारागार में रहे। गंगाधर तिलक दिवस मनाने के लिए बम्बई से निकाले गये विशाल जुलूस में पटेल सबसे आगे थे। उन्हें बंदी बना लिया गया, जिससे उन्हें 3 माह का कारावास भोगना पड़ा। 1931 ई. में कराची के कांग्रेस अधिवेशन में पटेल को अध्यक्ष चुना गया तथा सरकार गांधी-इरविन समझौते के असफल होने पर आंदोलन प्रारम्भ हुआ। गांधी के साथ सरदार पटेल को भी नजरबंद कर दिया गया।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सरदार पटेल ने भाग लिया और गिरफ्तार किये गये। 1945 में गांधीजी को छोड़े जाने के बाद ही सरदार पटेल को छोड़ा गया तथा 1946 में केन्द्र में अंतरिम सरकार की स्थापना हुई, पटेल उस सरकार में सम्मिलित हुए।
15 अगस्त, 1947 को भारत पूर्ण स्वतंत्र हो गया। स्वतंत्र भारत में सरदार पटेल ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् विभाजन के कारण देश के कई भागों में साम्प्रदायिक दंगे हुए। सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ के बल पर दंगों को बड़ी सख्ती से दबाया। इण्डियन सिविल सर्विस की जगह उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा का गठन किया तथा सरकारी खर्च में 78 करोड़ की कमी की। सरदार पटेल को जिस महान् कार्य के लिए याद किया जाता है, वह है - देश की रियासतों को एक सूत्र में पिरोना और उन्हें भारत के संघीय ढांचे में सम्मिलित करना। सरदार पटेल ने अपनी चतुराई, सूझबूझ, अदम्य साहस और कूटनीति से आनन-फानन में भारत में आने वाली लगभग 562 रियासतों को बिना रक्तपात हुए भारत में मिला लिया। कश्मीर, जूनागढ़ व हैदराबाद भारत में सम्मिलित होने के लिए तैयार नहीं थे। पटेल ने जूनागढ़ जाकर वहां के शासक नवाब को पहले तो समझाया, परन्तु इंकार करने पर पटेल ने सैनिक कार्यवाही का साहसी कदम उठाकर जूनागढ़ को सम्मिलित कर लिया।
इसी प्रकार हैदराबाद रियासत का विलय पटेल की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही सम्भव हो सका। विद्वानों का कथन है कि पटेल की सम्पूर्ण भारत में एकता स्थापित करने के कार्य की तुलना जर्मनी के प्रिंस विस्मार्क से की जा सकती है। पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, गांधी स्मारक की स्थापना एवं कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा मुख्य है। सरदार पटेल एक असाधारण पुरूष थे तथा समस्याओं को गहराई से जाकर साहस के साथ सामना करने तथा हल करने, ईमानदारी और कर्तव्य के प्रति सजगता, ओजस्वी वाणी उनके मौलिक गुण थे। ऐसे साहसी देशभक्त का निधन सन् 1950 को हो गया। मरणोपरांत 12 जुलाई, 1991 को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन और कर्म दोनों ही आज के नेताओं व युवाओं के लिए प्रेरणादायक एवं अनुकरणीय है। भारतीय इतिहास में सरदार पटेल का नाम चिरस्मरणीय है। आज के दिन चट्टानी व्यक्तित्व के धनी इस महान देशभक्त को शत्-शत् नमन करते हैं।
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