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    गुजरात समाचार : मोरबी के पुल टूटने की घटना का जिम्मेदार कौन सरकार या ठेकेदार ?

    गुजरात के मोरबी में पैदल यात्रियों के लिए बना सस्पेंशन ब्रिज रविवार रात को टूट गया। कुछ दिन पहले ही इसकी मरम्मत हुई थी। आम लोगों के लिए खोले जाने के महज 5 दिन बाद ही यह ब्रिज टूट गया। पुल पर मौजूद करीब 500 लोग नदी में जा गिरे। इनमें से 134 की अब तक मौत हो चुकी है। मृतकों में महिलाएं और 30 से ज्यादा बच्चे भी शामिल हैं। ब्रिज की केबल-जाली थामे रहे 200 लोगों को बचा लिया गया।

    मोरबी की पहचान कहा जाने वाला यह ब्रिज 143 साल पुराना था। इसकी चौड़ाई 1.25 मीटर (4.6 फीट) है। यानी करीब इतनी ही कि दो लोग आमने-सामने से गुजर सकें। इसकी लंबाई 233 मीटर (765 फीट) थी। इतनी कि अगर 500 लोग एक साथ पुल पर खड़े हों तो हर कोई लगभग एक-दूसरे से टच करता हुआ ही दिखाई देगा।

    पैदल यात्रियों के लिए बना यह पुल मोरबी के लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को दरबारगढ़ महल से जोड़ता था। हादसे के बाद कई सवाल उठे, जो दिखाते हैं कि जिम्मेदारों की अनदेखी ने एक साथ सैकड़ों लोगों की जान ले ली। अब हम सिलसिलेवार तरीके से वो सवाल आपके सामने रख रहे हैं, जिनके जवाब अगर वक्त रहते खोज लिए जाते, तो शायद इतनी बड़ी त्रासदी को टाला जा सकता था


    1.यह पुल पिछले 6 महीने से बंद था क्या जल्दबाजी में चालू किया गया

    मोरबी का केबल सस्पेंशन ब्रिज 20 फरवरी 1879 को शुरू किया गया था। 143 साल पुराना होने से इसकी कई बार मरम्मत हो चुकी है हाल ही में 2 करोड़ रुपए की लागत से 6 महीने तक ब्रिज का रेनोवेशन हुआ था गुजराती नव वर्ष यानी 26 अक्टूबर को ही यह दोबारा खुला था गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा एक-दो दिन में ही होने वाली है। कांग्रेस का आरोप है कि चुनावी फायदा लेने के लिए इसे बिना टेस्टिंग अफरातफरी में शुरू कर दिया गया।


    2. पुल के रेनोवेशन के बाद क्या उसकी मजबूती जांची गई

    नया पुल हो या किसी पुल का रेनोवेशन किया गया हो, उसको शुरू करने से पहले जरूरी है कि उसकी मजबूती की विशेषज्ञ जांच करें। ये परखते हैं कि इस पर कितना भार दिया जा सकता है। मोरबी के नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह झाला ने कहा कि ओरेवा ने प्रशासन को सूचना दिए बिना ही लोगों को पुल पर जाने की इजाजत दे दी।

    कंपनी ने न तो पुल खोलने से पहले नगरपालिका के इंजीनियरों से उसका वेरिफिकेशन कराया और न ही फिटनेस स्पेसिफिकेशन सर्टिफिकेट लिया। अब बड़ा सवाल ये है कि 26 अक्टूबर को ओरेवा कंपनी के MD जयसुख पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुल को चालू करने की घोषणा की थी, तब नगर पालिका ने इसे रोका क्यों नहीं


    3.प्रशासन ने घड़ी-बल्ब बनाने वाली कंपनी के जिम्मे ही छोड़ दिया पुल

    मोरबी का यह ऐतिहासिक पुल शहर की नगर पालिका के अधिकार में था। नगर पालिका ने इसकी मरम्मत की जिम्मेदारी अजंता ओरेवा ग्रुप ऑफ कंपनीज को सौंपी थी।

    यह इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों, कैलकुलेटर, घरेलू उपकरणों और एलईडी बल्ब बनाने वाली कंपनी है ओरेवा ने ही देश में सबसे पहले एक साल की वारंटी के साथ एलईडी बल्ब बेचने की शुरुआत की थी।


    नगर पालिका के CMO संदीप सिंह झाला ने माना कि मरम्मत के दौरान कंपनी के कामकाज की निगरानी के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं थी यानी पूरी तरह से कंपनी के ऊपर छोड़ दिया गया कि वह पुल को कैसे और किससे बनवाती है और कब चालू करती है

    4.कहीं चेतावनी या सूचना बोर्ड ही नहीं, तो लोगों को कैसे पता चलेगा कि ब्रिज की क्षमता कितनी

    ओरेवा कंपनी से अगले 15 साल यानी 2037 तक के लिए पुल की मरम्मत, रख-रखाव और ऑपरेशन का समझौता किया गया था। पुल पर कंपनी के नाम का बोर्ड तो मौजूद था, लेकिन क्षमता को लेकर दोनों छोरों पर कोई सूचना या चेतावनी नहीं लिखी गई थी।


    जानकारी मिली है कि पुल पर जाने के लिए बड़ों से 17 और बच्चों से 12 रुपए का टिकट वसूला जा रहा था ओरेवा कंपनी ही टिकट के पैसे वसूल रही थी, लेकिन टिकट चेक करने के लिए दोनों सिरों पर खड़े गार्ड्स ने लोगों की संख्या को चेक नहीं किया।


    5 पुल पर अचानक इतनी भीड़ कैसे हो गई

    यह ब्रिज पिकनिक स्पॉट के तौर पर मशहूर था। दिवाली बाद के वीकेंड में लोग घूमने निकले हुए थे। ब्रिज 6 महीने बाद खुलने की वजह से भी इसको लेकर लोगों में आकर्षण था। इस वजह से इतने ज्यादा लोग एक साथ वहां घूमने पहुंच गए। लोगों को रोका नहीं जा रहा था, इसलिए 17 रुपए का टिकट खरीदकर करीब 400 लोग एक साथ ब्रिज पर जा पहुंचे।


    6. क्या ब्रिज वह से टूटा जहां भीड़ ज्यादा थी


    फोटो और वीडियो देखकर सस्पेंशन ब्रिज बीच में से ही टूटा दिखाई दे रहा है, लेकिन ब्रिज के टूटने की शुरुआत कहां से हुई, इसकी पुख्ता जानकारी अभी मिलनी बाकी है गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने सोमवार सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ब्रिज कहां से टूटा और इसकी वजह क्या थी, यह जानकारी एफएसएल FSL रिपोर्ट से ही मिल सकेगी।


    7 इस हादसे में इतनी ज्यादा मौतों की वजह क्या है


    पैदल पुल और पानी के बीच करीब 100 फीट की दूरी होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। पानी की गहराई भी 15 फीट के करीब बताई गई है। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया था कि पुल टूटने के बाद लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरे थे NDRF ने इसके नीचे गाद होने की बात भी कही है। ऐसे में बहुत संभव है कि पुल से गिरने के बाद कई लोग गाद में जा धंसे हों।


    8 पिकनिक स्पॉट होने के बावजूद, रेस्क्यू और मेडिकल टीम कितनी अलर्ट

    हादसे के 15 से 20 मिनट के अंदर ही 108 की एंबुलेंस मौके पर पहुंच गई थी दुर्घटना बड़ी होने की वजह से 108 कमांड सेंटर ने आसपास के सभी जिलों की एंबुलेंस भी बुला ली थीं। करीब आधे घंटे में 300 एंबुलेंस मौके पर पहुंच गई थीं। घायलों को दुर्घटनास्थल से 7 मिनट की दूरी पर मौजूद जिला अस्पताल ले जाया गया।


    पुल गुजरात के शासक वाघजी ने बनवाया था ,सामान इंग्लैंड से मंगवाया था


    गुजरात के राजकोट से मोरबी का यह पुल 64 किलोमीटर दूरी पर बना हुआ है विक्टोरियन लंदन स्टाइल में बने इस पुल को मोरबी के पूर्व शासक सर वाघजी ने बनवाया था इसके लिए मटेरियल इंग्लैंड से मंगवाया गया था तब इसे यूरोप में उपलब्ध सबसे बेहतरीन तकनीक के जरिए बनाया गया था।


    भारत में पुल टूटने के ये तीन सबसे बड़े हादसे हुए है


    10 सितंबर 2002 - रफीगंज रेल ब्रिज, बिहार (130 मौतें)


    29 अक्टूबर 2005 - वेलिगोंडा रेलवे ब्रिज,आंध्र प्रदेश (114 मौतें)


    21 जुलाई 2001- कादालुंडी रिवर रेल ब्रिज,केरल (57 मौतें)




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