जयंती विशेष : महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध वकील, कवि हृदय चितरंजनदास देशबन्धु की जयन्ती पर विशेष जन्म : 5 नवम्बर, 1870 मृत्यु : 16 जून, 1925
मरते दम तक ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ देश की स्वतंत्रता के लिए लड़़ाई लडऩे वाले चितरंजन दास महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध वकील व कवि हृदय थे। उनका जन्म कलकत्ता में धनाढय परिवार में 5 नवम्बर, 1870 को हुआ। उनके पिता भुवन मोहन दास पत्रकार तथा ब्रह्म समाज के प्रमुख सदस्य थे एवं उनकी माता निस्तारणी देवी पढ़ी-लिखी व उदार स्वभाव की थी। वे बचपन से ही गरीबों के प्रति सहानुभूति रखते थे तथा गरीब विद्यार्थियों व सहपाठियों को घर से आने वाला भोजन बांट देते थे तथा उनकी आर्थिक मदद किया करते थे।
कलकत्ता प्रेसिडेन्सी कॉलेज से बी.ए. पास कर वे लंदन सिविल सर्विस की परीक्षा के लिए गये तथा वहां से बेरिस्टरी परीक्षा पास कर भारत लौटे व वकालत शुरू की। उन्होंने ‘अलीपुर षडयन्त्र काण्ड’ में महान देशभक्त ‘अरविन्द घोष’ के मुकदमे की पैरवी की तथा मेहनत से मुकदमा अरविन्द घोष के हक में जीतकर उनका बचाव किया। वकालत पेशे के कारण वे क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आये तथा पूरी तरह से राजनीति में आ गये। 1906 में उन्होंने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया।
वर्ष 1917 में वे बंगीय प्रादेशिक समिति के अध्यक्ष बने तथा अपने भाषण में उन्होंने पंचायतराज की स्थापना पर बल दिया। होम रूल की माँग को लेकर ‘एनी बेसेन्ट’ द्वारा देशभर में किये आन्दोलन में एनी बेसेन्ट को अंग्रेज सरकार ने मद्रास में गिरफ्तार किया तो चितरंजन दास ने इसका कड़ा विरोध किया तथा होमरूल आंदोलन में शामिल हो गये। 1919 में ‘रोलेट एक्ट’ एवं भारत सुरक्षा कानूनों के विरूद्ध सारे भारत में आंदोलन किया गया, जिसका मुख्य नेतृत्व चितरंजन दास ने किया। वर्ष 1919 में ही पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग का पाश्विक हत्याकाण्ड हुआ तो चितरंजन दास जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने कड़ा विरोध किया तथा रविन्द्रनाथ टैगोर ने ‘नाईट’ की उपाधि का परित्याग किया।
चितरंजन दास ने महात्मा गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में बढ़़-चढक़र भाग लिया तथा अपनी वकालत को छोडक़र आंदोलन में अपनी धर्मपत्नी बसन्ती देवी के साथ कूद पड़े। अंग्रेजी सरकार द्वारा इन्हें एवं इनकी पत्नी को 6 माह की सजा दी गई। वर्ष 1921 में चितरंजन दास अहमदाबाद में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे तथा बाद में कांग्रेस छोडक़र उन्होंने मदन मोहन मालवीय व मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर ‘स्वराज पार्टी’ की स्थापना की। वर्ष 1924 के चुनाव में बंगाल और मध्यप्रदेश में स्वराज पार्टी ने सबसे बड़े दल के रूप में सफलता हासिल की। 1924-25 में वे कलकत्ता नगर महापालिका के चेयरमैन चुने गये।
वे एक महान देशभक्त तो थे ही, वे उच्च कोटि के कवि व पत्रकार भी थे। इन्होंने 1923 में ‘फॉरवर्ड’ पत्रिका प्रारम्भ की, जिसके सम्पादक सुभाषचन्द्र बोस थे। सुभाषचन्द्र बोस चितरंजन दास के प्रिय शिष्य थे। चितरंजन दास ने बंगाल साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सागर संगीत, अंतर्यामी, किशोर-किशोरी इनके काव्य ग्रन्थ हैं। इन्होंने ‘नारायण’ नामक वैष्णव साहित्य प्रधान मासिक पत्रिका काफी समय तक चलाई। आपने ‘इंडिया फॉर इंडियन’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना भी की थी। चितरंजन दास अपने सिद्धान्तों के पक्के थे।
उन्होंने बंगाल के साम्प्रदायिक समस्या का हल, जिस प्रकार से निकाला, वो उनकी बुद्धिमता का परिचय देता है। वे निडर व ओजस्वी वक्ता थे तथा एक ईमानदार, त्यागी व सेवाभावी थे, जिन्होंने अपनी मृत्यु से पहले अपना घर व जमीन महिलाओं के उत्थान के लिए राष्ट्र के नाम कर दी थी, जहाँ वर्तमान में चितरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान स्थापित है तथा दार्जिलिंग स्थित उनके निवास पर एक ‘शिशु संरक्षण केन्द्र’ राज्य सरकार द्वारा संचालित किया जाता है।
वे एक महान पुनीत आत्मा थे, जिन्होंने आजाद भारत का सपना देखा था। वे हिन्दू और मुस्लिम के बीच कोई भेद नहीं मानते थे। वे जीवनभर देशवासियों में अपने लेखों द्वारा स्वतंत्रता की अलख जगाते रहे। कहा जाता है कि आजादी के आंदोलन में भाग लेने से पूर्व चितरंजनदास विलासिता का जीवन जीते थे। उनके कपड़े विलायत से धूल कर आते थे तथा महंगे विदेशी वस्त्र पहना करते थे। परन्तु देश की आजादी की खातिर उन्होंने विदेशी कीमती वस्त्रों की होली जलाकर स्वदेशी खादी पहनने लगे थे तथा ‘स्वदेशी मण्डल’ की स्थापना की थी।
उनकी मृत्यु दार्जिलिंग में उनके निवास स्थान पर 16 जून, 1925 को हुई। ऐसे महान राष्ट्रभक्त जिन्हें कलकत्ता के लोगों ने ‘बंगाल का बेताज बादशाह’ पदवी दे रखी थी तथा उनकी अटूट देश प्रेम, त्याग की भावना व सरलता के कारण उन्हें देशबन्धु कहा जाता था। ऐसे महान राष्ट्रभक्त को शत-शत नमन करते हैं।
मनीराम सेतिया
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य
109 एल ब्लॉक, श्रीगंगानगर
मो.नं. 98871-22040
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