jayanti news : आधुनिक युग के चाणक्य, महान स्वतंत्रता सेनानी चक्रवर्ती राज गोपालाचार्य जन्म : 9 दिसम्बर, 1878 मृत्यु : 28 दिसम्बर, 1972
आधुनिक युग के चाणक्य कहे जाने वाले राजाजी राज गोपालाचार्य एक महान स्वतंत्रता सेनानी, एक चतुर राजनीतिज्ञ व कूटनीतिज्ञ थे, जिन्हें अपनी अद्भुत योग्यता एवं कार्यक्षमता के बल पर स्वतंत्र भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ चेन्नई प्रदेश के पोरपल्ली गाँव में 9 दिसम्बर, 1878 में पिता नल्लन चक्रवर्ती के घर ब्राह्मण परिवार में जन्मे राज गोपालचार्य कुशाग्र बुद्धि के होने के कारण मद्रास प्रेसीडेन्सी कॉलेज से बी.ए. व चेन्नई से ही कानून की परीक्षा उत्तीर्ण कर एक प्रसिद्ध वकील बने।
वकालत के दौरान वे प्रसिद्ध राष्ट्रवादी बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित होकर राजनीति में कूद पड़े। सितम्बर, 1920 में महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण उन्होंने वकालत छोड़ दी व कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। सन् 1921 में कांग्रेस के महामंत्री बने तथा मद्रास सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व करने पर जेल गये। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वे अनेकों बार जेल गये। उन्होंने अंग्रेजी सरकार की नीतियों का पुरजोर विरोध किया। उनका व्यक्तित्व सहज था। उन्होंने आंदोलनों के तहत जनजागरण के लिए पदयात्राऐं की तथा ‘नमक कानून’ का उल्लंघन करने पर पुन: गिरफ्तार हुए व जेल गए। 1946 में वे देश की अंतरिम सरकार में केन्द्रीय उद्योग मंत्री बने।
देश की स्वतंत्रता के पश्चात् 1947 में इन्हें बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। सन् 1948 से 1950 तक उन्होंने भारत के गवर्नर जनरल के पद को सुशोभित किया। सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के पश्चात् 26 दिसम्बर, 1950 में वे केन्द्रीय गृह मंत्री बनाये गये। उन्होंने गृहमंत्री बनकर देश के चहुंमुखी विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1952 में वे मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने अपने मुख्यमंत्री काल में राज्य में ‘मद्य निषेध कानून’ लागू किया तथा पहली बार चेन्नई के विद्यालयों में हिन्दी पढ़ाना शुरू करवाया।
वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने ‘नशाबंदी’ और स्वदेशी वस्तुओं विशेषकर ‘खादी’ के प्रचार-प्रसार में विशेष योगदान दिया। उनका जीवन सरल व सादगीपूर्ण था। धोती, कुर्ता, घड़ी व आँखों में काला चश्मा उनके व्यक्तित्व को निखारता था। वे जाति भेद, वर्ण भेद व छुआछूत के खिलाफ लड़ते रहे तथा अन्र्तजातीय विवाह पर जोर देते रहे। उन्होंने स्वयं ब्राह्मण होते हुए भी अपनी पुत्री का विवाह गाँधी जी के पुत्र के साथ किया। इस कार्य में राज गोपालाचार्य को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कांग्रेस की नीतियों से रूष्ठ होकर 1957 में इस्तीफा दिया तथा 1959 में ‘स्वतंत्र पार्टी’ की स्थापना की, जिनमें एनजी. रंगा, के.एम. मुंशी फील्ड मार्शल, के.एम. करिअप्पा भी शामिल हुए। उनकी पार्टी ने 1962 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें व 1967 में लोकसभा चुनाव में 45 सीटें जीतकर मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाई। वे उत्साही होकर समाज व देश की सेवा करते रहे तथा अनेकों अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं जैसे आणविक युद्ध आदि पर भी अपना वक्तव्य देते रहे।
वे एक उच्च कोटि के वक्ता व लेखक भी थे। उनका भाषण इतना सरल व प्रभावशाली होता था कि लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे। उन्होंने एक अच्छे लेखक के रूप में महाभारत, गीता, रामायण, उपनिषद पर कई पुस्तकों का सृजन किया। उनके साहित्य में भारतीय संस्कृति का भव्य स्वरूप प्रकट होता है। वे एक कहानीकार भी थे, उन्होंने तमिल और अंग्रेजी में अनेकों छोटी-छोटी उपदेशात्मक कहानियां लिखी हैं। उन्होंने ‘धुम्रपान’ व ‘मद्यपान’ छोडऩे के लिए भी पुस्तकें लिखी। उन्होंने ‘सोक्रेटीज’ तथा ‘रोम सम्राट माक्र्स अरेलियर’ पर पुस्तकें लिखी हैं।
राज गोपालाचार्य में आत्मविश्वास, निर्भिकता व दृढ़ निश्चय तथा कर्तव्यपरायणता का गुण कूट-कूटकर भरा हुआ था व तुरन्त निर्णय लेने की अपार क्षमता थी। वे दूसरों की परवाह किए बिना अपनी स्पष्ट बात कहने में नहीं चुकते थे। उनका व्यंग्य सीधा व्यक्ति के हृदय पर असर डालने वाला होता था। उनकी इसी कूटनीतिज्ञता के कारण वे आधुनिक युग के चाणक्य कहे गए हैं।
अद्भुत प्रतिभा के धनी राज गोपालाचार्य को भारत सरकार ने 1954 में ‘भारत रत्न’ की उपाधि से विभूषित किया। उनका जीवन गीता के कर्मयोगी की भांति सतत क्रियाशील व उदार था। स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कर्मयोगी राज गोपालाचार्य का 94 वर्ष की आयु में 28 दिसम्बर, 1972 में निधन हो गया। ऐसे महान कर्मयोगी व स्वतंत्रता सेनानी राज गोपालाचार्य को उनकी जयंती पर शत-शत नमन।
संकलनकर्ता :- मनीराम सेतिया सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य 109, एल ब्लॉक, श्रीगंगानगर
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