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    Jayanti special :- महान साहित्यकार, शिक्षाविद् व स्वतंत्रता सैनानी कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जन्म - 30 दिसम्बर, 1887 मृत्यु - 8 फरवरी, 1971

    भारतीय विद्या भवन की स्थापना कर देश की सेवा करने वाले कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी एक महान शिक्षाविद्, राजनेता, कानून विशेषज्ञ व बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाई। 30 दिसम्बर, 1887 को डिप्टी कलक्टर माणिकलाल मुंशी ब्राह्मण परिवार के घर कन्हैयालाल का जन्म हुआ। उन्होंने 1910 में बम्बई विश्वविद्यालय से एलएलबी कानूनी शिक्षा पासकी तथा एडवोकेट बनकर वकालत शुरू की। उन्हें अरविन्द घोष जैसे महान शिक्षाविद् का सानिध्य मिला, जिससे उनमें बौद्धिक, आध्यात्मिक व देश की संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा उत्पन्न हुई। उन्होंने वकालत के साथ ही साहित्य सृजन करना शुरू कर दिया था तथा एक ही दशक में एक कहानी संग्रह दो सामाजिक व तीन ऐतिहासिक उपन्यास लिखकर एक साहित्यकार के रूप में जाने गये। वे अपनी लेखनी से उपन्यास नाटक, कहानी, निबंध, आत्मकथा, जीवनी आदि साहित्यिक विधाओं पर लिखते रहे।


    महर्षि अरविन्द घोष, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी व वल्लभ भाई पटेल के सम्पर्क में रहकर उन्होंने कानूनी ज्ञान से कांग्रेस पार्टी की सेवा की तथा देश के स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेकर स्वतंत्रता की अलख जगाई। कन्हैयालाल ने होम रूल आंदोलन में भाग लिया तथा वल्लभ भाई पटेल के साथ 1928 में ‘बारदोली आंदोलन’ में भाग लिया। ‘नमक सत्याग्रह’ आंदोलन के तहत उन्हें 6 माह की सजा हुई तथा 1931 में ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में भाग लेने पर उन्हें 2 साल की सजा हुई। इस प्रकार एक महान स्वतंत्रता सैनानी के रूप में वे देश की स्वतंत्रता के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहे।


    मुंशी कन्हैयालाल उच्च कोटि के शिक्षा शास्त्री थे। उन्होंने 1938 में ‘भारतीय विधा भवन’ की स्थापना की। उसके कुलपति पद पर रहकर साहित्य, कला, विधा, संस्कृति, विज्ञान और धार्मिक पुनरूत्थान के लिए खुद को समर्पित कर दिया। भारतीय विधा भवन के तहत वर्तमान में 120 से अधिक केन्द्र व 350 से अधिक शिक्षण संस्थायें पूरे देश में शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं। विद्या भवन में ‘समर्पण’ और ‘भवन जर्नल’ जैसी पत्रिकायें, भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में तीन सौ से अधिक पुस्तकों के प्रकाशन में डॉ. राधाकृष्णन और राजगोपालाचार्य जैसे ख्यातनाम विद्वान लेखकों का इसे सहयोग मिल चुका है। इसी प्रकार गुजरात विश्वविद्यालय, आनन्द के कृषि संस्थान तथा बड़ौदा का विश्वविद्यालय की स्थापना में कन्हैयालाल जी का योगदान अविस्मरणीय रहेगा।  


    हिन्दी व देवनगरी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में मुंशी कन्हैयालाल ने भरसक प्रयत्न किये। मुंशी जी संविधान के मर्मज्ञ थे। आपके कानूनी तथा संविधान सम्बन्धी निपुणता व अनुभव भारतीय संविधान के निर्माण में उपयोगी सिद्ध हुए। भारतीय संविधान का प्रारूप बनाने वाली 6 सदस्यीय समिति के मुंशी कन्हैयालाल एक सदस्य थे। जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर साहब ने की थी। मुंशी जी ने इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस तथा विश्व के राष्ट्रों के संविधान का अध्ययन करके भारतीय संविधान के निर्माण में बहुमूल्य सहयोग किया।


    देश की स्वतंत्रता के पश्चात् उन्होंने प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में 1950 से 1952 तक कृषि व खाद्य मंत्री के रूप में सेवाएं दी। उस समय देश में खाद्य संकट विकराल था। मुंशी कन्हैयालाल ने देश को खाद्य संकट से उबारने के भरसक प्रयत्न किये तथा केन्द्रीय कृषि मंत्री के रूप में देश के सामने एक उपयोगी स्थायी ‘वन महोत्सव’ योजना रखी, जिसे स्वीकार कर लिया गया। यह योजना प्रतिवर्ष पूरे देश में ‘वन महोत्सव सप्ताह’ के रूप में मनाई जाती है तथा वृक्षारोपण किया जाता है। मुंशी कन्हैयालाल द्वारा सुझाई गई इस योजना की महत्ता को समझते हुए राज्य सरकारों ने ‘सामाजिक वानिकी’ और ‘कृषि वानिकी’ योजनाऐं भी चलाई हैं। 1952 में मुंशी जी को उत्तरप्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। 


    सहकारी कृषि के प्रश्न पर मतभेद के कारण उन्होंने 1956 में कांग्रेस को छोड़ दिया तथा राजगोपालाचार्य के साथ ‘स्वतंत्र पार्टी’ की स्थापना की। बाद में उन्होंने भारतीय जनसंघ की सदस्यता ग्रहण की। धीरे-धीरे राजनीति में रहते हुए उनकी रूचि सांस्कृतिक व शैक्षणिक कार्यों में तथा साहित्य सृजन में अधिक बढऩे लगी। मुंशी कन्हैयालाल को एक महान साहित्यकार के रूप में हमेशा याद किया जाता है, जिनकी गुजराती, हिन्दी, अंग्रेजी, कन्नड़, तमिल व मराठी आदि भाषाओं में 127 पुस्तकें प्रकाशित हुई। गुजराती में साहित्यिक उपन्यासों की शुरूआत मुंशी कन्हैयालाल द्वारा की गई। 


    गुजरात नो-नाथ, पृथ्वी वल्लभ, राजाधिराज, भगवान काटिल्य, स्वप्नदृष्टा, लोक हर्षिणी, जय सोमनाथ, भगवान परशुराम, भग्न पादुका तथा कृष्णावतार 5 खण्डों में उनके प्रमुख उपन्यास हैं। कृष्णावतार के खण्ड 6 व 7 उनकी मृत्यु के पश्चात् प्रकाशित हुए। इसी प्रकार पुरन्दर, 4 राज्य, अविभक्त आत्मा, वे खराबजगण, तर्पण, आशांकिता, काकानीशशी, पुरुष समोवडी, धु्रव स्वामिनी देवी व स्नेहभ्रम उनकी प्रमुख नाट्य कृतियां हैं। उपन्यासकार मुंशी जी के उपन्यासों में आकर्षक घटनाऐं, जीवन्त चरित्र नाटयकार की प्रतिभा और परस्पर टकराते गतिमान संवादों के कारण उनके उपन्यास लोकप्रिय हुए हैं। मुंशी कन्हैयालाल ने मुंशी प्रेमचंद के साथ ‘हंस पत्रिका’ का सम्पादन किया तथा दो साप्ताहिक पत्र ‘नवजीवन’, और ‘सत्य’ व ‘दैनिक यंत्र इण्डिया’ के सहायक सम्पादक के रूप में सेवाएं दी। उन्होंने 1932 में ‘साहित्य संसद’ की स्थापना भी की तथा मासिक ‘गुजरात’ का सम्पादन भी किया। उनकी कुशल सम्पादन कला, लेखन शैली की सभी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते थे।


    वे जीवन के अन्तिम पल तक साहित्य सृजन में तल्लीन रहे। 6 फरवरी, 1971 को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि चतुर्मुखी प्रतिभा के प्रति नतमस्ष्क हूँ। उन्होंने कहा कि कन्हैयालाल के पास चुम्बकीय शक्ति थी, जिससे लोग इनकी तरफ आकर्षित होते थे। ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, जिनके द्वारा स्थापित विद्या भवन भारतीय संस्कृति के प्रति देश प्रेम जगाती है। उन्हें शत-शत नमन करते हैं।

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