स्वतंत्रता के साथ-साथ शिक्षा की अलख जगाने वाले महान राष्ट्र भक्त पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जयंती (28 जनवरी) पर विशेष
देश सेवा से बढक़र कोई धर्म नहीं है, जिस व्यक्ति में जातीय गौरव और आत्मसम्मान का विचार नहीं, वह नर पशु समान है, जैसे अनमोल वचन कहने वाले पंजाब की पवित्र भूमि पर जन्मे लाला लाजपत राय बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी तथा महान राष्ट्र भक्त थे, जिनकी वाणी ओजस्वी थी तथा उनकी केसरी की भांति गर्जना से अंग्रेज अधिकारी कांप उठते थे। उनमें देशभक्ति का जज्बा तथा भारत माता को स्वतंत्रता दिलाने की इतनी प्रबल इच्छा थी कि उन्होंने वकालत पेशे को छोडक़र खुद को देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया। वे एक श्रेष्ठ लेखक, उत्कृष्ट वक्ता, सेवाभावी शिक्षा शास्त्री, राजनीतिक नेता, महान चिंतक, विचारक एवं दार्शनिक थे। उन्हें पंजाब केसरी की उपाधि प्राप्त थी। वे पंजाब के नहीं, पूरे भारत के केसरी थे। वे देश की सामाजिक, शैक्षिक, राजनैतिक व पिछड़ेपन की स्थिति को उभारने व सुधारने में जीवनपर्यन्त लगे रहे।
उन्होंने स्वतंत्रता के साथ-साथ शिक्षा जगत को भी जागृत किया। उन्होंने स्वामी दयानन्द के साथ मिलकर आर्य समाज की स्थापना तथा लाला हंसराज के साथ एंग्लो वैदिक विद्यालय एवं कॉलेज की स्थापना की। उन्होंने कहा था - ‘स्वतंत्रता के लिए शिक्षा के ढांचे में परिवर्तन करना आवश्यक है।’ वे कहते थे कि आर्य समाज मेरी माता है, वैदिक धर्म मेरा पिता है, मैंने देश सेवा का पाठ आर्य समाज से पढ़ा है। वकालत की डिग्री पास करने के बाद रोहतक व हिसार में वकालत की तथा हिसार में म्युंसिपल बोर्ड के अध्यक्ष रहे। अपने अध्यक्षकाल में उन्होंने ऐसे सराहनीय कार्य किए, जिससे उनकी सेवायें लोग आज भी याद करते हैं।
हिसार से वे लाहौर में वकालत के लिए गए, जहां उनके सामाजिक व राजनैतिक जीवन का विकास हुआ। लालाजी की अछूतों व पिछड़ी जाति के लोगों के प्रति सहानुभूति थी तथा उनकाजीवन स्तर सुधारने में वे लगे रहे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के नेता थे तथा बाल गंगाधर तिलक व विपिन चन्द्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से जाना जाता है। इस त्रिमूर्ति ने भारत की स्वतंत्रता की मांग की थी। बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया। सन् 1905 के गोपालकृष्ण गोखले की अध्यक्षता में बनारस कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने गर्जना करते हुए कहा था ‘आजादी हमारा अधिकार है, अंग्रेजों से भीख मांगने की वस्तु नहीं है।’ उन्हें राष्ट्रवादी गतिविधियों के कारण 9 मई, 1907 को गिरफ्तार कर लिया गया। 1908 में वे इंग्लैण्ड गए, वहां भी ओजस्वी भाषणों से भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा किए जाने वाले दमन की पोल खोली।
वे अमेरिका भी गए और वहां रहते हुए उन्होंने ‘इण्डिया होम रूल लीग’ की स्थापना की तथा अनेक ग्रंथों की रचना की। उन्होंने लाहौर में ‘नेशनल कॉलेज’ तथा ‘तिलक स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स’ की स्थापना की। ब्रिटिश सरकार ने लाहौर में ‘विक्टोरिया’ की मूर्ति स्थापित करने का जब निर्णय लिया तो लालाजी ने प्रबल विरोध किया, जिस पर उन्हें डेढ़ वर्ष की सजा हुई। इसके पश्चात् 9 नवम्बर, 1921 को उन्होंने ‘लोक सेवा मण्डल’ की स्थापना की। इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। लालाजी ने स्वदेशी वस्त्रों के प्रयोग व विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार की भावना बढ़ाई तथा वे हिन्दू धर्म महासभा से जुड़े रहे।
लालाजी का संकल्प व मिशन था कि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध क्रांति मिसाल को प्रज्जवलित करके देश को आजाद करवाना। इसके लिए उन्होंने ‘दि पिपुल यंग इण्डिया’ अंग्रेजी में तथा ‘वन्देमातरम्’ उर्दू पत्रों का प्रकाशन किया। ‘वन्देमातरम्’ समाचार-पत्र में लालाजी ने क्रांतिकारी विचारों को जनता में फैलाया। वे इसमें लिखते थे ‘मेरा मजहब हक परस्ती है, मेरी मिल्लत कौम परस्ती है, मेरी इबादत खलक परस्ती है, मेरी अदालत मेरा अंत:करण है, मेरी जायदाद मेरी कलम है, मेरा मंदिर मेरा दिल है और मेरी उमंगें सदा जवान है।’
सन् 1924 में उन्होंने ‘अछुतोद्वार कमेटी’ की स्थापना की तथा अछूतों में शिक्षा प्रचार के लिए पाठशालाऐं भी खोलीं। उन्होंने वैश्याओं में सुधार का कार्य किया एवं उनमें शिल्प व शिक्षा का प्रचार किया। उन्होंने देश में फैले अकाल पीडि़तों, भूकम्प पीडि़तों तथा देश में फैली महामारी में पीडि़त जनता की तन-मन-धन से सेवा की। लाला लाजपत राय के द्वारा प्रतिपादित स्त्री शिक्षा, पर्दा प्रथा उन्मूलन, विधवा विवाह, अनाथ उद्वार जैसी समाजसेवा अविस्मरणीय है। लालाजी ने हिन्दी में ‘शिवाजी’, ‘श्रीकृष्ण’, ‘दयानन्द’ और कई महापुरुषों की जीवनियां लिखी। उन्होंने देश में विशेषत: पंजाब में हिन्दी प्रचार-प्रसार में बहुत योगदान दिया तथा हिन्दी लागू करने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया। लालाजी ने एक बार कहा था ‘मेरे सामने यदि तराजू के पलड़े में दुनियाभर की दौलत रख दी जाए और दूसरे में हिन्दुस्तान की आजादी तो मेरे लिए तराजू का वही पलड़ा भारी होगा जिसमें मेरे देश की स्वतंत्रता रखी हो।’ ब्रिटिश सरकार द्वारा 1928 में ‘साईमन कमीशन’ का आगमन हुआ तथा लाहौर में इस कमीशन के विरोध में बहुत बड़ा जुलूस निकाला गया,
जिसका नेतृत्व लालाजी ने किया। इस जुलूस में लालाजी पर पुलिस घुड़सवारों द्वारा लाठीचार्ज किया गया। कई लाठियां लालाजी की छाती पर लगी, वे बुरी तरह घायल हो गये। उस समय लालाजी ने कहा था ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।’ लालाजी का इस घटना में आई चोटों की वजह से 17 नवम्बर, 1928 को देहांत हो गया। परन्तु उनके द्वारा स्वतंत्रता की जगाई गई अलख जिंदा रही, जिससे लालाजी के बलिदान के 20 वर्षों के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्यास्त हो गया। लोग आज भी उस स्वतंत्रता सैनानी हिंद केसरी को बड़ी श्रद्धा से नमन् करते हैं। लाला लाजपत राय के अनमोल वचन मानसिक दासता से अधिक हानिकारक कोई दासता नहीं। संसार में मातृ शक्ति सबसे पवित्र और सबसे महान है। मातृभूमि की सेवा करना हमारा धर्म है, जैसे प्रेरणादायी विचार आज भी देशवासियों का मार्गदर्शन करते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें