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    सरकार अपने फेल हो चुके सिस्टम को छुपाने के लिए नटबंदी का सहारा ना लें ,राजस्थान सरकार हर परीक्षा में लगाती है डिजिटल इमरजेंसी,इंटरनेट से नहीं अलमारी में हुए हैं पेपर लिक

    सरकार  अपने फेल हो चुके सिस्टम को छुपाने के लिए नटबंदी का सहारा ना लें ,राजस्थान सरकार हर परीक्षा में लगाती है डिजिटल इमरजेंसी,इंटरनेट से नहीं अलमारी में हुए हैं पेपर लिक



    राजस्थान कि कांग्रेस सरकार ने  राज्य की आधी से ज्यादा  आबादी को इंटरनेट से महरूम कर दिया है की या फिर यूं कहें कि इंटरनेट-बंदी बना दिया राजस्थान की आम जनता का कसूर बस इतना है कि वो ऐसी प्रदेश में रहती है जहां सरकारी तंत्र पेपर लीक जैसे छोटे छोटे अपराधों को भी नहीं रोक पाता और अपनी विफलता को छुपाने के लिए सरकार सबसे पहले नेट को बंद कर देती है नेट बंद होने से ना सिर्फ पढ़ने वाले विद्यार्थियों का नुकसान होता है बल्कि ऑनलाइन पेमेंट करने वाले ग्राहक भी परेशानी मिलते हैं 


    शुक्रवार रात से लेकर अब तक  राजस्थान के लोगों के मन में सिर्फ एक सवाल है कि क्या  नेट जैसी जरूरी चीज को बंद कर देने से पेपर लीक होने  रुक जाएंगे  क्या इस तरह से हर छोटी बड़ी घटना के बाद इंटरनेट का बंद हो जाना या सरकार द्वारा बंद कर देना आम जनता के अधिकारों का आनंद नहीं है इंटरनेट को बंद करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी कहा है कि नेटबंदी सरकार का गलत फैसला है सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट इसे गलत घोषित कर चुका है।



    आपको याद होगा कि राजस्थान में बीते 2 सालों में  कितनी परीक्षाएं हुई हैं जिस पर सरकार ने इंटरनेट बंद किया सरकार के इंटरनेट बंद करने के बावजूद भी खुलेआम नकल हुई और इसका सीधा-सीधा खामियाजा उन विद्यार्थियों को भुगतना पड़ा जिन्होंने ईमानदारी से पढ़ लिखकर पेपर दिए और जब सरकार का जोर नहीं चला तो उन्होंने सीधे परीक्षा को रद्द घोषित कर दिया जिससे उस परीक्षा को देने के लिए दिन-रात पढ़ने वाले विद्यार्थियों का मनोबल टूटा और साथ ही पैसा और समय भी खराब हुआ इस तरह से इंटरनेट को बंद कर देना किसी समस्या का हल नहीं है पिपली जैसी समस्या को रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे  


    सवाल तो यह भी उठता है कि इंटरनेट बंद करना ही समस्या का समाधान है तो इंटरनेट बंद होने के बावजूद भी पेपर कैसे लीक हो जाता है सरकार और सरकार के भ्रष्ट अधिकारियों को समझना होगा कि पेपर लीक होना इंटरनेट से संबंधित नहीं है पेपर लीक होना चप्पल रखी हुई अलमारियों पर सिक्योरिटी करने वाले यहां उन जगहों के आला अधिकारियों की नाकामी यानी ठल्ला पन हो सकता है

    इंटरनेट के इस दौर में जहां हर काम आजकल इंटरनेट से होने लगा है आम आदमी खरीदारी करने के लिए भी इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगा है पैसे का लेनदेन हो या फिर और जरूरी काम इंटरनेट का सहारा जरूरी है हमारा जीवन इंटरनेट और स्मार्टफोन के युद्ध घूमता हुआ चल रहा है लेकिन इन सबके बावजूद अलमारियों में रखे उन तमाम पेपर्स को बचाने की जिम्मेदारी  जिस विभाग के आला अधिकारियों के कंधों पर हैं उन्हें तो जैसे उन  चप्पल रखने वाली अलमारियों में लगने वाली दीमक चाट गई हो



    राजस्थान के बुद्धिजीवी मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की मौजूदा सरकार ने  अपने कार्यकाल का लगभग 75 फ़ीसदी समय यानी के लगभग सवा चार साल का वक्त पूरा कर लिया है सरकार का पूरा सिस्टम और पूरा जोर सोशल सिक्योरिटी पर रहा युवाओं को भी फोकस किया गया कई घोषणाएं और कोशिश की गई, लेकिन इंटरनेट बंदी के वक्त क्या कभी ये सोचा गया? क्या नेटबंदी कर सरकार सोशल सिक्योरिटी से ही समझौता कर रही है?


    राजस्थान में  राज्य सरकार का भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा  राज्य का सरकारी सिस्टम पूरी तरह से आमजन के हितों की क्या कर रहा है जरा जरा सी बात को लेकर के दैनिक जीवन में बेहद जरूरी हो चुका इंटरनेट बंद कर देना किसी समस्या का हल नहीं हो सकता हां अगर राज्य सरकार इंटरनेट को फंडामेंटल राइट (मौलिक अधिकार) नहीं मानती तो उसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट)  द्वारा जनवरी 2020 में की गई टिप्पणी दोबारा पढ़नी चाहिए, जिसमें कहा गया है- इंटरनेट संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार है यानी यह जीने के हक जैसा ही जरूरी है इंटरनेट को अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता।


    राजस्थान में कभी भी किसी भी प्रकार का कोई झगड़ा साद धरना प्रदर्शन या यहां तक की परीक्षा होने पर भी सबसे पहले राज्य सरकार के भ्रष्ट सिस्टम को जो काम याद आता है वह है आम जनता के मौलिक अधिकार बन चुके रोजमर्रा के लिए जरूरी इंटरनेट को बंद करना सरकार इंटरनेट को बंद करके अपनी जिम्मेदारी होती है तीसरी कर लेती है और उनके इस निकम्मी रवैया से आम जनता को कितनी परेशानी होती है 


    इसका अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल है इंटरनेट बंद होना एक डिजिटल इमरजेंसी की तरह ही माना जाता है सरकार का यह बेतुका प्रयोग अपनी कमजोरियों को छुपाने में काम आता है अगर पेपर लीक रोकने के लिए सरकार सख्त नियम व कानून नहीं बना सकती तो सरकार को आम जनता के साथ क्यों बार-बार खिलवाड़ करना भी ठीक नहीं है पेपर लीक जैसे मामलों को रोकने के लिए सरकार को सख्त रवैया अपनाना होगा और अपने भ्रष्ट अफसरों को इन तमाम कामों के लिए जिम्मेदारी लेने के लिए पाबंद करना होगा



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