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    श्रीगंगानगर : राजाराम मोहनराय पुस्तकालय प्रतिष्ठान : जिला पुस्तकालय में स्थानीय लेखकों व पाठकों के बीच संवाद



    श्रीगंगानगर : राजाराम मोहनराय पुस्तकालय प्रतिष्ठान, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार एवं भाषा पुस्तकालय विभाग राजस्थान सरकार के निर्देशों के अनुसरण में स्थानीय लेखकों व पाठकों के बीच संवाद आयोजन की कड़ी में ‘पाठक संवाद’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ‘पुस्तक महत्व’ पर केन्द्रित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता स्थानीय लेखक शिक्षाविद् मनीराम सेतिया ने की तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी सुनील कुमार भाटिया थे एवं विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ लेखिका सन्तोष कुमारी थी।







    कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि सुनील कुमार भाटिया ने कहा कि पुस्तक की महत्ता तो सभी को पता है, लेकिन आज के युग में डिजिटल और शब्द के बीच जो संघर्ष चल रहा है, वह पुस्तकों के लिए संक्रमणकाल है। ऐसे में पुस्तक को बचाने के लिए सभी को विशेषत: पाठक वर्ग को आगे आना होगा। पुस्तकों से प्रेम करके पुस्तक-संस्कृति को सुरक्षित और संवर्धित कर सकते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ‘महापुरुषों की गौरव गाथाएं’ के लेखक मनीराम सेतिया ने कहा कि पुस्तक संस्कृति के विकास के लिए प्रबुद्ध वर्ग को पुस्तक लेखन की दिशा में काम करना होगा। 


    भले ही आप डायरी ही लिखें, लेकिन लिखने का सिलसिला शुरू करेंगे तो वह पुस्तक का रूप भी लेेगी और उन्हीं सकारात्मक विचारों से समाज की दिशा बदलेगी। मुख्य अतिथि ‘आलेख मंजरी’ और ‘रामायण आदर्श पात्र’ की लेखिका सन्तोष कुमारी ने विभिन्न उद्धरणों व अनुभवों से पुस्तक की महत्ता पर प्रकाश डाला तथा विद्यार्थियों से सद्साहित्य पढऩे का आह्वान किया।





    मंच संचालन करते हुए जिला पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. रामनारायण शर्मा ने कहा कि पुस्तकें संस्कृति का आईना है तथा सार्वजनिक पुस्तकालय जन विश्वविद्यालय हैं। इसलिए अधिकाधिक पाठकों को पुस्तकालय से जुडऩा चाहिए। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुनील भाटिया को सम्मान प्रतीक एवं मनीराम सेतिया की पुस्तक ‘महापुरुषों की गौरव गाथाएं’ व सन्तोष कुमारी की पुस्तक ‘रामायण : आदर्श पात्र’ की प्रति भेंट की गई। सफल आयोजन के लिए परामर्शदाता मनप्रीत सिंह ने सबका आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर पुस्तकालय के प्रबुद्ध पाठक, स्टाफ, कैरियर निर्माण में लगे अनेक छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में जलपान की व्यवस्था की गई थी।



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