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    वीर योद्धाओं की कर्मस्थली ‘धरती धोरां री’ राजस्थान के स्थापना दिवस 30 मार्च, 2024 पर विशेष


    \राजस्थान वीर योद्धाओं की कर्मस्थली, जिसके कण-कण में शौर्य गाथाएँ समाई हुई है, का स्थापना दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है। मरु प्रदेश रंगीला अपना नखरालो राजस्थान ‘धरती धोरां री’ की गूंज से गुंजायमान, स्थापत्य कला एवं मूर्ति शिल्प का धनी लोक गीत, लोक नृत्य की बिखरती छटायें, सतरंगी वेशभूषा व राजस्थानी उत्सवों की समृद्ध परम्परा जैसी अनगिनत विशेषताओं से भरपूर राजस्थान प्रदेश का इतिहास सम्पूर्ण भारतवर्ष में अनूठा है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारतवर्ष के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में 50 जिले हैं। जनसंख्या की दृष्टि से जयपुर राजस्थान राज्य का सबसे बड़ा जिला है तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से जैसलमेर राजस्थान राज्य का सबसे बड़ा जिला है एवं धौलपुर जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा जिला है।
    30 मार्च, 1949 को 22 रियासतों को मिलाकर राजपूताना राजस्थान नाम दिया गया था। इसके एकीकरण को 8 साल 7 महीने व 14 दिन का समय लगा था। राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में हुआ था, जो 18 मार्च 1948 से प्रारम्भ होकर 1 नवम्बर, 1956 को वर्तमान स्वरूप में आया। 9 अगस्त, 1947 को राजस्थान के भारत में विलय होने से सम्बन्धित अनुबंध पर बीकानेर के राजा सार्दुल सिंह ने हस्ताक्षर किये थे। साथ ही धौलपुर और जोधपुर के शासकों ने भी अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे। 18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली के तत्कालीन राजाओं ने मत्स्य संघ का निर्माण किया, जिसका उदघाटन भारत सरकार के मंत्री बी.एन. गाडगिल ने किया था। राजस्थान संघ का निर्माण बांसवाड़ा, बूंदी, किशनगढ़, डुंगरपुर, झालावाड़, कोटा, प्रतापगढ़, शाहपुर, टोंक व कुशलगढ़ से मिलकर हुआ, जिसका उदघाटन 25 मार्च 1948 को हुआ। कोटा इस संघ की राजधानी बनी। अगले चरण में संयुक्त राजस्थान का निर्माण हुआ, जिसकी राजधानी उदयपुर थी। इस नवीन संघ का उदघाटन 18 अप्रैल 1948 को प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने किया। माणिक्य लाल वर्मा संघ के मुख्यमंत्री बनाये गये। अगले चरण में 20 जनवरी, 1949 को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की राजपूताना परिषद में एक प्रस्ताव पारित कर राजस्थान की बीकानेर, जयपुर, जोधपुर व जैसलमेर रियासतों को शामिल किया, जिससे 30 मार्च 1949 में सभी रियासतों को मिलाकर वृहद राजस्थान का निर्माण हुआ, जिसका उदघाटन सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा किया गया एवं जयपुर को राजधानी घोषित किया गया। 4 अप्रैल 1949 को हीरालाल शास्त्री वृहद राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। तभी से 30 मार्च को राजस्थान स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। 10 मई 1949 को दिल्ली के सम्मेलन में मत्स्य संघ के भरतपुर, धौलपुर, अलवर व करौली के शासकों ने वृहद राजस्थान में शामिल होना स्वीकार किया। 26 जनवरी 1950 को सिरोही के सम्मिलित होने पर संयुक्त राजस्थान का नाम राजस्थान संघ रखा गया। अजमेर शासित प्रदेश अजमेर-मारवाड़ के शामिल होने पर राजस्थान संघ को राजस्थान नाम दिया गया। राजस्थान पुनर्गठन आयोग ने 1 नवम्बर, 1956 को माउंट आबू क्षेत्र को भी राजस्थान में विलय कर लिया। इस प्रकार राजस्थान की एकीकरण की प्रक्रिया 18 मार्च, 1948 से प्रारम्भ होकर 1 नवम्बर, 1956 को वर्तमान राजस्थान के निर्माण के साथ समाप्त हुई।
    राजस्थान स्थापना दिवस 30 मार्च को राज्य के सभी जिलों, तहसीलों  पंचायत स्तर पर राज्य सरकार एवं सामाजिक संगठनों, विद्यालयों व महाविद्यालयों में कार्यक्रम आयोजित कर राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक व शैक्षणिक क्षेत्रों में हुई प्रगति व गौरवपूर्ण इतिहास की जानकारी दी जाती है। राजस्थान के प्रसिद्ध लोक गीत सिंहासन बत्तीसी, पंचदण्ड प्रबन्ध, विक्रम चरित्र, बेताल पचीसी, ढोला मारू का दूहा, हरजी रो ब्यावलो तथा नरसी जी रो मायरो लोकगीतों की प्रस्तुति दी जाती है। आज के दिन पाबूजी, रामदेवजी, गोगाजी, जाम्भोजी तथा तेजाजी से सम्बन्धित प्रसिद्ध राजस्थानी गीत गाये जाते हैं। 
    राजस्थान के लोक गीत लाखा सुमल, घुड़लो, सियालो प्रपीड़ा, घूमर मैरू आदि राजस्थानी लोक गीत हृदय को छूने वाले हैं एवं इनकी कसक और वेदना देशवासियों को प्रभावित करती है। जयपुर का हवामहल, जंतर-मंतर, आमेर का किला, बिड़ला मंदिर, दिलवाड़ा जैन मंदिर, माऊंट आबू, उदयपुर के फतेहसागर झील, सहेलियों की बाड़ी, कुम्भलगढ़ दुर्ग, जैसलमेर में मोती महल, विलास महल, अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह, ढ़ाई दिन का झोपड़ा, जोधपुर का सूर्य मंदिर, भरतपुर का घना पक्षी विहार आदि पर्यटन स्थल पूरे भारतवर्ष में अपनी पहचान रखते हैं। राजस्थान के प्रमुख पर्व व त्यौहार गणगौर, श्रावणी तीज त्यौहार, शीतला अष्टमी व आखातीज पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लासपूर्वक मनाये जाते हैं। राजस्थान वीर योद्धाओं व वीरांगनाओं की कर्मस्थली है, जहां राणा सांगा, महाराणा प्रताप, जयमल फत्ता, दुर्गादास, हाड़ी रानी, रानी पदमिनी, 
    रानी कर्णावती तथा भामाशाहों के त्याग व आदर्श से राजस्थान का नाम पूरे देश में बड़ी श्रद्धा व सम्मान से लिया जाता है। वीर गाथाकाल की सर्वोपरि रचनाएं पृथ्वीराज रासो, हमीर रासो, खुमाण रासो व बीसल देव रासो इसी राजस्थान प्रदेश में लिखी गई हैं, जो राजस्थान की भूमि पर चार चांद लगाए हुए हैं। राजस्थान स्थापना दिवस मनाने का उद्देश्य राजस्थान की सम्पूर्ण प्रगति, यहाँ की प्राकृतिक छटा का कला कौशल, स्थापत्य ललित कलाओं, लोक नृत्यों की बिखरती छटा, सतरंगी वेशभूषा आदि का बखूबी बखान करना है, जिससे राजस्थान की संस्कृति को हर देशवासी व युवा पीढ़ी जान सके। सभी देशवासियों को राजस्थान स्थापना दिवस की शुभकामनाएं।

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