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    1 मई श्रम दिवस ( may 1 labor day ) के लिए विशेष पूर्ण रोजगार के सूत्र का दिन है श्रम दिवस मई दिवस , मजदूर दिवस! या फिर श्रम दिवस?



    1 मई दुनिया भर में मेहनतकशों के द्वारा मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय दिवस है।  यह दिन पूर्ण रोजगार के  सूत्र की सैद्धांतिक अवधारणा  का दिन है । इस अवधारणा को धूमिल करने के उद्देश्य से इस दिवस के नाम के साथ भी उसी प्रकार से छेड़छाड़ की गई जिस प्रकार से साहित्य और दर्शन के मूल शब्दों के साथ की गई है ।


    वास्तव में  यह श्रम दिवस या  Labour  Day है जिसका  अपना इतिहास भी है।जिसको दिनांक के आधार पर "मई दिवस" और मेहनतकशों के द्वारा मनाए जाने के कारण इसको "मजदूर दिवस" तक सीमित कर दिया है। मेहनतकश वर्ग के विरोधियों ने इस शब्द  के संकल्प को धुंधला करते हुए इसे "मई दिवस "तक सीमित कर दिया। जिसको मेहनतकश वर्ग  के नेतृत्व ने भी चेतन रूप में स्पष्टता नहीं दी।

        

    इस दिन का संबंध 24 घंटे के प्राकृतिक दिन में से काम का दिन कितना लंबा हो इससे संबंधित है ।

    काम का दिन भी दो भागों में बटा हुआ होता है। आवश्यक श्रम समय तथा अतिरिक्त श्रम समय । इसी प्रकार पूंजी के भी 2 भाग होते हैं।


     मजदूर को मिलने वाला भुगतान  परिवर्तनशील पूंजी Variable  Capital कहलाता है जो उसकी क्रय शक्ति बनता है। इसके अलावा  बाकी सारी स्थिर पूंजी constant  Capital कहलाती है जो निवेश / उपयोग के दौरान बढ़ती नहीं है ।केवल  परिर्वतनशील पूंजी ही नए मूल्य को  सृजित करती है ।

         

    इसलिए आवश्यक श्रम दिवस के दौरान प्राप्त किया गया भुगतान ही श्रमिक का अपना होता है । मालिक की कोशिश यह होती है कि वह मशीन को उन्नत करके, तीव्र करके या काम के दिन को बड़ा करके  अतिरिक्त श्रम समय को बढ़ा ले । आवश्यक श्रम दिवस के अनुपात में अतिरिक्त  श्रम दिवस को जितना बड़ा कर लिया जाएगा  मालिक  के मुनाफे उतने ही बढ़ जाएंगे और मजदूर की वास्तविक स्थिति  आनुपातिक रूप में उतनी  ही कमजोर होती चली जाएगी।

          


    यही प्रवृति दुनिया भर में  पूंजीवादी प्रवृति के रूप में प्रचलित है। जिस कारण एक तरफ बेरोजगारी बढ़ रही है और दूसरी तरफ काम करने वालों पर काम का बोझ  बढ़  जाता है तथा  काम की तीव्रता अधिक होने के कारण उसके पास फुरसत  Free time नहीं बचता है ।  एक तरफ काम न मिलने का तनाव है दूसरी तरफ़ काम के बोझ वाले  स्वय मशीन बन जाते हैं जो अपने आप तथा समाज के लिए समय नहीं निकाल पाते। शारीरिक, मानसिक रूप में तनाव ग्रस्त हो जाते हैं इसका एकमात्र हल यही है कि काम का दिन न्यूनतम किया जाए और उसको आवश्यक श्रम समय तक सीमित किया जाए यही श्रमिक वर्ग की समस्याओं का हल है ।

    इस  नियम को 1890 के बाद ऐतिहासिक रूप मेंऔद्योगिक करण से पहले यह दिन 20 घंटे 18 घंटे तक भी रहा। लेकिन 1833 में औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरूप इस काम के दिन को सीमित करने का इतिहास शुरू हुआ। इसका मुख्य कारण उन्नत मशीन के आने से बेरोजगारी का बढ़ते जाना और उसका हल किए जाने की चुनौती के रूप में सामने आया ।

        

    1825 से पहले दुनिया भर में किसी भी प्रकार की बेरोजगारी नहीं पाई जाती थी ।सबसे पहले 1833 में यह बेरोजगारी के रूप में सामने आई। तब  काम के दिन को सीमित किए जाने की ओर विद्वानों का ध्यान गया। शुरू-शुरू में श्रमिकों ने मशीन को अपना दुश्मन मानते हुए मशीन को तोड़ना शुरू किया, रोकने के प्रयास किया जो इतिहास में ' लूडाइट आंदोलन' के नाम से प्रसिद्ध है (जो  सैद्धांतिक रूप में गलत है जिसको आज भी कहीं कहीं मजदूरों के द्वारा रोजगार बचाने के रूप मशीन को  में रोका जाता है कई विद्वान आज AI का भी विरोध करते देखे जा सकते हैं)


       

    धीरे-धीरे काम के दिन को सीमित के जाने किए जाने का काम शुरू हुआ ।1842 में काम का दिन 12 घंटे का रखा गया। 1848 में इंग्लैंड में कानून के द्वारा 10 घंटे का काम का दिन तय किया गया तो मार्क्स, एंजल ने इसे अपनी सैधान्तिक जीत बताया।लेकिन पूंजीपतियों ने इसका प्रभाव खत्म करने के लिए मजदूरी में 25% तक कटौती कर दी इसके बाद मशीन का उन्नत होना जारी रहा तो कार्ल मार्क्स के द्वारा बुलाई गई  ' पहली इंटरनेशनल '(1864) में काम के दिन को सैद्धांतिक तौर पर 8 घंटे  का करने पर चर्चा की तथा 1866 में स्वीकार कर लिया गया। जिसे 1886 में शिकागो के श्रमिकों ने अपनी जान देकर आंदोलन के माध्यम से  अमेरिका के कुछ कारखानों में लागू करवाया ।

         

    उसके बाद 1890 में  ' एंगलस' के नेतृत्व में दूसरी इंटरनेशनल में दुनिया भर में 8 घंटे के कार्य दिवस का नारा दिया तथा  कि दुनिया भर के मेहनतकशों को इस एक नारे, एक झंडे  तले एक फौज की तरह चलना होगा।ताकि उन्नत मशीन के आने पर बेरोजगारी को खत्म   किया जा सके।केवल 1917 में रूस में पहली  बार पूरे देश में लागू किया गया और सैद्धांतिक तौर पर स्वीकार किया गया कि इसको और सीमित किया जाएगा । 1919 में लेनिन के नेतृत्व में गठित " कम्युनिस्ट इंटरनैशनल" ने इस सिद्धांत को दुनिया भर में लागू करने का नारा दिया।

           

    1919 के बाद दुनिया भर में इसको सीमित करने पर अंतर्राष्ट्रीय तौर पर कोई जोर नहीं दिया गया जिसका खामियाजा  पूरी दुनिया का श्रमिक वर्ग आज भी  भुगत रहा है इसलिए इस दिन के संकल्प को  मई दिवस या मजदूर दिवस के स्थान पर श्रम दिवस (लेबर डे )के रूप में उसकी संकल्पना को समझ कर ही श्रमिक वर्ग के  हित वाले परिणाम प्राप्त किया जा सकते हैं। श्रमिक वर्ग के दुखों का कारण भी यही है कि मशीन के उन्नत होने के अनुपात में कानूनी रूप में काम के दिन को (श्रम दिवस) को हम सीमित नहीं करवा पाए। काम के दिन को सीमित करने के  प्रभाव के बारे में " पूंजी"   नामक प्रसिद्ध पुस्तक में लिखा है कि "जब तक काम के घंटों की सीमा निश्चित नहीं होती और उस सीमा को सख्ती से लागू नहीं किया जाता तब तक समाज सुधार के अगले कदम किसी  भी सफलता की आशा में नहीं उठाए जा सकते "

            

    आज  भारत में लगभग 40 करोड़ बेरोजगार  हैं तथा राजस्थान में लगभग 25 लाख  हैं ।इन बेरोजगारों को रोजगार कैसे दिया जाए ?यह बहुत बड़ा प्रश्न है जिसे  विद्वान विभिन्न तरीके से टाल जाते हैं ।

    ' मूल्य के श्रम सिद्धांत ' के अनुसार बेरोजगारी  के स्थाई हल के लिए श्रम दिवस की मूल अवधारणा  को  समझ कर  लागू  करना  होगा।

        

    इस मूल अवधारणा के अनुसार ज्यों ज्यों तकनीक उन्नत होती है  त्यों त्यों काम का दिन  सीमित करना पड़ता है ।अगर  काम का दिन सीमित नहीं करेंगे तो   मशीन की मदद से बढ़ी हुई उत्पादकता के अनुपात में श्रमिक काम से बाहर चले जाएंगे तथा नए पढ़े-लिखे युवाओं   तथा अतिरिक्त प्रोलिटेरियट को रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं होंगे ।इसलिए आज के श्रम दिवस के अवसर पर देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी का एकमात्र हल काम के दिन को सीमित किया जाना है इसके अलावा इस बेरोजगारी का कोई भी हल नहीं है ।

     भारत में इसका एक मात्र हल है  यह है कि हर एक नौजवान को रोज़गार गारंटी अधिनियम के अनुसार रोजगार गारंटी मिले।

             

    AI के दौर में  बेरोजगारी का एक मात्र हल युवाओं को  भगत सिंह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम  BNEGA लागू करना  है जिसके अंतर्गत अकुशल को 30000 अर्ध कुशल को 35000 कुशल को 45 000 तथा उच्च कुशल को₹60000 प्रति माह रोजगार की गारंटी होनी चाहिए ।इसका कानून संसद में पारित किया जाना चाहिए ।इस कानून का नाम "भगत सिंह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून"BNEGA होना चाहिए । सबको रोजगार देने के लिए तकनीक की उन्नति के अनुपात में 8 घंटे वाले  कार्य दिवस को 6 घंटे  करने का  कानून भी संसद में पारित होना चाहिए। जिससे काम का समय25% घटेगा और रोजगार के अवसर33% बढ़ेंगे । ' सरबत के भले ' वाला समाज  बन  सकेगा।जिनके पास free time नहीं उन्हे समय तथा जिनके पास रोज़गार नहीं उन्हें रोजगार  मिलेगा।इसके अलावा कोई भी सूत्र इस  सामाजिक संकट को हल नहीं कर सकता।  

     

    श्रम दिवस की भावना के अनुसार job for all and service security तथा reduction of working hours without wage loss ही असली नारे हैं जो श्रम दिवस की मूल भावना के अनुसार दुनिया को बदलने का एक मात्र सूत्र हैं।

    लखवीर मान लेखक

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