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    जन्म : 9 अप्रैल, 1893 मृत्यु : 14 अप्रैल, 1963 , घुमक्कड़ी स्वभाव के लेखक, बहु भाषाओं के ज्ञाता ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन’

    घुमक्कड़ी स्वभाव के लेखक, बहु भाषाओं के ज्ञाता ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन’
    जन्म : 9 अप्रैल, 1893 मृत्यु : 14 अप्रैल, 1963


    महापंडित के अलंकार से सम्मानित महान ज्ञानी, बहुभाषाओं, लगभग 36 भाषाओं के ज्ञाता महान लेखक व महान क्रान्तिकारी राहुल सांकृत्यायन ने अपने लेखों, पुस्तकों व व्याख्यानों से देश में स्वतंत्रता की अलग जगाई। 9 अप्रैल, 1893 को पंदहा ग्राम, जिला आजमगढ़ में जन्मे राहुल सांकृत्यायन के जन्म का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। बचपन में उनके नाना ‘रामशरण पाठक’ ने भारत की व्यापक यात्रायें की थी। वे अजंता एलोरा व अन्य ऐतिहासिक स्थलों के बारे में बालक केदार को बतलाया करते थे तथा यात्राओं की कहानियां सुनाया करते थे। बालक केदार पाण्डेय पर घुमक्कड़ी का भूत सवार हो गया और जैसे-जैसे बड़े होते गये, उनकी घुमक्कड़ प्रवृत्ति बन गई। 

    इस कारण उन्होंने सारी शिक्षा स्वाध्याय से हासिल की। उनका 11 वर्ष की आयु में सन् 1904 में विवाह हो गया था, परन्तु वे अपनी पत्नी को कभी स्वीकार नहीं कर सके। सन् 1911 में वे घर त्याग कर छपरा पहुंच गये तथा परसा मठ में महंत के उत्तराधिकारी बने। बाद में उन्हें जिला कांग्रेस का सचिव बनाया गया। केदार पाण्डेय ने स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी जी के सत्याग्रह आंदोलन 1921 में बढक़र भाग लिया व जेल गये। बाद में उन्होंने आर्य समाज के प्रचारक के रूप में काफी समय तक कार्य किया।

    वर्ष 1927-28 में वे श्रीलंका गए तथा वहां उन्होंने बौद्ध साहित्य का अध्ययन किया एवं बौद्ध भिक्षु बने। इस पर इनका नाम केदार पाण्डेय से ‘राहुल सांकृत्यायन’ पड़ा। उन्होंने बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन किया तथा लम्बे समय तक बौद्ध भिक्षु रहने के बाद वे पुनः: गृहस्थ जीवन में आये तथा कमला जी से विवाह किया। उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण की, परंतु कुछ समय पश्चात् हिन्दी के प्रश्न पर कम्युनिस्ट पार्टी से मतभेद होने के कारण इन्होंने पार्टी छोड़ दी। 


    1929 में राहुल जी तिब्बत गये तथा अनेकों कठिनाइयों का सामना करते हुए उन्होंने संस्कृत एवं पाली में ग्रन्थों का पता लगाया, जो दो हजार वर्ष पहले लुप्त हो गये थे। धर्मकीर्ति, प्रज्ञाकर गुप्त ज्ञान श्री, नागार्जुन, असंग, वसुबन्धु रत्नाकर, रत्नकीर्ति और गुण प्रभु जैसे विद्वानों के यश को अमर कर दिया। इन ग्रंथों का उद्धार करने के लिए कड़ी मेहनत करके पचास हजार से अधिक श्लोक उन्होंने नकल किए और लाखों श्लोकों के फोटो लिए। इन यात्राओं में उन्होंने आठवीं सदी के  ‘सरहपा’ नामक लेखक को खोज निकाला, जिन्होंने हिन्दी के दोहे लिखे थे। यह सारी साहित्य सामग्री वे इक्कीस खच्चरों में लादकर भारत लेकर आये, जो कि पटना म्यूजियम के ‘राहुल सेक्शन’ में आज भी संग्रहित है।

    उन्होंने विद्यालंकार महाविद्यालय श्रीलंका में 19 मास रहकर अध्ययन व अध्यापन का कार्य किया। 1932-1933 में वे इंग्लैंड व युरोप में रहे तथा वहां की संस्कृति व साहित्य का अध्ययन करते हुए साहित्य सृजन किया। 1934 में वे फिर तिब्बत दूसरी बार गये। उन्होंने 1935 में जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत रूस और ईरान की यात्रायें की तथा वहां की संस्कृति व साहित्य पर लिखते रहे।

    1936 में वे फिर तिब्बत की यात्रा के लिए तीसरी बार गये। 1937 में सोवियत रूस की यात्रा दूसरी बार की। 1938 में वे तिब्बत की यात्रा पर चौथी बार गये। 1939 में राहुल जी ने अमवारी में किसान सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और जेल गये। 1940 से 1942 तक उन्होंने महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढक़र भाग लिया तथा वे हजारी बाग जेल में और देवली बन्दी कैम्प में रहे। 1943 में उन्होंने उत्तराखण्ड की यात्रा की। 1944 से 1947 तक वे सोवियत रूस की यात्रा में रहे तथा उन्होंने लेनिनग्राड में प्रोफेसर के पद पर कार्य किया। 1947 से 1948 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद के बम्बई अधिवेशन में राहुल सांकृत्यायन अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए। 1950 में वे मसूरी व दार्जिलिंग में गये। उन्होंने हिमालय यात्रा के बारे में ग्रंथ लिखे, जिनमें गढ़वाल, कुमायुँ, किन्नर देश और नेपाल जैसे अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए।

    1958 में वे चीन के गणवादी जनतंत्र में साढ़े चार मास तक रहे। वे 1959 से 1961 तक श्रीलंका में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे। राहुल सांकृत्यायन की जीवन यात्रा पाँच खण्डों में 2770 पृष्ठों में प्रकाशित हुई। राहुल सांकृत्यायन ने विभिन्न देशों की यात्रा कर अनेक धर्म ग्रन्थों व विज्ञान के उच्च कोटि के ग्रन्थों का सृजन किया। अनेक भाषाओं में उन्होंने 155 ग्रन्थ लिखे। विज्ञान के उच्च कोटि के ग्रन्थों में विश्व की रूपरेखा, मानव समाज, जीव रसायन शब्दकोश और प्रत्यक्ष शरीर शब्द कोष प्रमुख हैं। उनके आत्मकथा ग्रन्थ, बचपन की स्मृतियां, अतीत से वर्तमान मेरे असहयोग के साथी और जिनका मैं कृतज्ञ हूँ। उनके अन्य ग्रंथों में बुद्धचर्या, बौद्ध संस्कृति, घुमक्कड़ शास्त्र हिन्दी काव्यधारा, संस्कृत काव्य धारा, दोहाकोश इत्यादि हैं।

    1961 में उनकी स्मृति खत्म हो गई, जिसका ईलाज सोवियत रूस में 1961 से 1963 तक चला, परन्तु 14 अप्रैल, 1963 में उनकी मृत्यु हो गई। राहुल सांकृत्यायन को महापंडित सम्मान, साहित्य वाचस्पति सम्मान, डी लिट (मानद), भागलपुर व श्रीलंका से तथा भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।  

    ऐसे महान घुमक्कड़ व बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी महान लेखक राहुल सांकृत्यायन को उनकी जयंती पर शत-शत नमन, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में अनेक देशों की यात्रायें की तथा उनकी भाषा, साहित्य व संस्कृति का अध्ययन करके महान सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखा।    




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