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    उत्तरप्रदेश लोकसभा चुनाव : प्रदेश की वो सीटें जहां बाहुबलियों सालो रहा दबदबा ,अपनी इच्छा से बन जाते थे सांसद और विधायक , आकड़े ये बताते है देखे



    उत्तरप्रदेश ; चाहे चुनाव बड़ा हो या छोटा. सांसद और विधायक के उम्मीदवार से लेकर गांव के चुनावों में उनका दबदबा रहता था. इन बाहुबलियों की सहमति के बिना गांवों में लोग उम्मीदवार का नामांकन भरने से भी डरते थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, इन सभी बाहुबलियों की जमीन खिसक गई. कुछ अब इस दुनिया में मौजूद नहीं हैं। इस लोकसभा चुनाव में शायद ही पूर्वांचल का कोई बाहुबली मैदान में नजर आएगा.




    अस्सी के दशक में मशहूर थे हरिशंकर तिवारी 

    1980 के दशक में हरिशंकर तिवारी का गोरखपुर पर शासन था. हरिशंकर तिवारी बाबा के नाम से लोकप्रिय थे. छात्र राजनीति से आये हरिशंकर तिवारी की गिनती बाहुबलियों में होती थी. ठाकुर नेता वीरेंद्र प्रताप शाही से उनकी दुश्मनी के किस्से आज भी मशहूर है दोनों के बीच आए दिन खूनी जंग होती रहती थी.1985 में तिवारी राजनीति में आये और जेल में रहते हुए चिल्लूपार से विधायक चुने गये। वे लगातार 22 साल तक यहां से चुनाव जीते। सरकार किसी की भी हो, वह मंत्री भी बन सकते थे. 16 मई 2023 को उनका निधन हो गया।


    मुख्तार अंसारी का दबदबा ख़त्म

    मुख्तार अंसारी का दबदबा पूर्वांचल में किसी से छिपा नहीं था. पिछले 4 दशकों से मुख्तार का पूर्वांचल में दबदबा था. मुख्तार पर करीब 65 मुकदमे दर्ज थे. हाल ही में मुख्तार का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह मऊ विधानसभा सीट से पांच बार विधायक भी रहे। उन्होंने आखिरी बार 2017 में चुनाव लड़ा था और 2022 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था. मुख्तार अंसारी पर बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का भी आरोप था.



    धनंजय सिंह का तीन दशक तक राज

    धनंजय सिंह के नाम भी पूर्वांचल में खूब चलता धनंजय का आपराधिक रिकॉर्ड 3 दशक से भी ज्यादा पुराना है. 1991 से 2023 के बीच उनके खिलाफ कुल 43 मामले दर्ज हैं। ये मामले न केवल लखनऊ और जौनपुर में बल्कि दिल्ली में भी दर्ज हैं, हालांकि धनंजय सिंह 22 मामलों में बरी हो चुके हैं। हाल ही में धनंजय सिंह को एक इंजीनियर के अपहरण के मामले में दोषी ठहराया गया था और 7 साल की सजा सुनाई गई थी. जिसके बाद धनंजय सिंह भविष्य में कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे उनके जौनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा थी. बता दें कि अपने रसूख को बचाने के लिए धनंजय सिंह ने वर्ष 2002 में राजनीति में एंट्री ली और रारी से विधायक बन गए. 2009 में लोकसभा का चुनाव जीता था.


    अतीक अहमद का आतंक भी था 

    तब के इलाहाबाद और अब के प्रयागराज समेत पूर्वांचल के कई जिलों में अतीक अहमद का खौफ था. अतीक जमीन कब्जाने से लेकर कई तरह की अवैध गतिविधियों का दूसरा नाम बन गया था. एक समय था जब अतीक अहमद का पूर्वांचल की एक दर्जन सीटों पर दबदबा माना जाता था। कहा जाता था कि ये सीटें अतीक के प्रभाव में थीं और वह खुद इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट से पांच बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं। अब अतीक अहमद की हत्या हो गई है. मुठभेड़ में उनका बेटा भी मारा गया है. पत्नी फरार है.

     ऐसे में उसकी राजनीतिक विरासत संभालने वाला कोई नहीं बचा.


    बाहुबली विजय मिश्रा पर भी लगी रोक
    बाहुबली विजय मिश्रा पर लगभग 83 मुकदमें दर्ज हैं. किसी समय में भदोही से लेकर प्रयागराज तक विजय मिश्रा का बोलबाला था. अपराधिक दुनिया के बाद विजय मिश्रा ने राजनीति में घुसपैठ की और भदोही की ज्ञानपुर सीट से लगातार चार बार विधायक रहे. योगी सरकार आने के बाद कार्रवाई शुरू हुई. 2022 के विधासभा चुनाव में वह तीसरे नंबर रहे. अभी हाल ही में 13 साल पुराने एक आर्म्स एक्ट के केस में तीस साल की सजा सुनाई गई, जिसके बाद वह 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते.


     

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