• Breaking News

    नारी शिक्षा की अलख जगाने वाले महान देशभक्त, महान समाज सुधारक महात्मा ज्योति राव फुले , 11 अप्रैल, 2024 को जयंती पर विशेष


    ज्योति राव फुले एक महान समाज सुधारक व नारी शिक्षा की महाराष्ट्र में अलख जगाने वाले एक महान देशभक्त थे, जिन्होंने पूरा जीवन समाज की दशा-सुधारने व 19वीं शताब्दी में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों व पाखण्डों का पुरजोर विरोध किया। 11 अप्रैल, 1827 को पूना के पिछड़े क्षेत्र में गोविन्द राव के घर में जन्मे ज्योति राव फूले को बचपन से शूद्र होने की पीड़ा सहन करनी पड़ी। 

    उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया, इस कारण घर में ही पढ़ाईकी। उन्होंने होश संभालते ही पूरे देश में फैली धार्मिक व सामाजिक कुरीतियां, पाखंडों, अस्पृश्यता जैसी परम्पराओं पर गंभीरता के साथ विचार किया तथा पूर्व समाज सुधारकों के विचारों पर मनन कर इन्हें समाज से उखाड़ फेंकने का दृढ़ संकल्प किया। ज्योतिराव फूले ने यह महसूस किया कि सभी प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ है। स्त्री व पुरुष को सभी अधिकार समान रूप से भोगने का अवसर मिलना चाहिए। शिक्षा दोनों के लिए आवश्यक है। अविद्या के कारण आदमी की बुद्धि भ्रष्ट होती है। मनुष्य के स्वार्थ के कारण कभी जाति, कभी धर्म के नाम पर पाखंड होते हैं।

    ज्योतिराव के समय में शूद्र व नारी दोनों के लिए विद्यार्जन करना प्रतिबंधित था। शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश की आज्ञा नहीं थी तथा कुओं से पानी लेना तक वर्जित था। मंदिर के कपाट उनके लिए बंद थे। दलित वर्ग को उच्च वर्ण वालों की रात-दिन सेवा करने के बाद पेट भरने के लिए भोजन मिलता था। ज्योति राव ने इन तमाम प्रश्नों पर गहन चिंतन किया। उनके हृदय में मनुस्मृति, वेद, पुराण, महाभारत, रामायण, गीता आदि धर्मग्रंथों के प्रति आशंकाऐं उत्पन्न हुई तथा कर्मकाण्डी पाखंडों के लिए ब्राह्मण वर्ग के प्रति उनमें घृणा जागृत हुई। उन्हें स्वयं बचपन में ब्राह्मण मित्र की बारात में अपमानित होना पड़ा था, जिसकी पीड़ा को लेकर पूरे दलित समाज के लिए उनका हृदय कराह उठा।

    ज्योतिराव ने चिंतन किया कि देश में असंख्य शूद्र, दलित लोगों के साथ ईश्वर अथवा धर्म का नाम लेकर पशुवत व्यवहार क्यों किया जाता है तथा किस आधार पर पैदा होते ही बालक हिंदू, मुसलमान, सिक्ख व ईसाई हो जाता है, जबकि न ही उसे धर्म का ज्ञान होता है और न ही उसकी आस्था होती है।

    उन्होंने दलित शोषित वर्ग व बेसहारा नारियों के हृदय में चेतना जागृत करने के लिए शिक्षा की अलख जगाने का बीड़ा उठाया। सन् 1848 में उन्होंने अछूत वर्ग के लिए पहली पाठशाला खोली तथा बालिकाओं के लिए कन्या विद्यालय खोलने वाले वे देश के प्रथम समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सावित्री बाई फूले को अध्यापिका का प्रशिक्षण दिलाकर विद्यालय में पढ़ाना शुरू किया। उन्हें उस समय विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था।

    ज्योतिराव फूले ने ‘सत्य शोधक समाज’ नामक संगठन की स्थापना की एवं विभिन्न जागरूक सामाजिक कार्यकर्ताओं को साथ लेकर अनाथ बच्चों व सताई हुई नारियों को आश्रय देकर अनाथालय की स्थापना करवाई तथा जातिवाद के कारण अन्याय का शिकार लोगों को अधिकार दिलाने के लिए वे जीवनपर्यन्त संघर्ष करते रहे।
    ज्योतिराव फूले के विचार में किसानों की दयनीय स्थिति आर्थिक असमानता के कारण है। उनके विचार में जमीन जोतने वाला जमीन का स्वामी होना चाहिए तथा गरीब मजदूर के पसीने की कमाई में एक हिस्सा मजदूर को मिलने के वे समर्थक थे। उन्होंने बम्बई के मजदूरों को संगठित किया तथा उनकी समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने के लिए प्रमुख रूप से छत्रपति शिवाजी, राजा भोंसला का पखड़ा, ब्राह्मणों का चातुर्य, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत आदि पुस्तकों द्वारा समाज को जागृत करने का कार्य किया।

    ज्योतिराव फूले ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए भी संघर्ष किया। उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया। ज्योतिराव फूले द्वारा 19वीं शताब्दी में स्त्रियों एवं शूद्रों की शिक्षा के प्रसार तथा अस्पृश्यता निवारण के लिए किया गया संघर्ष व किसानों, शोषित दलितों व मजदूरों के हितों के लिए किए गए संघर्ष के कारण जनता ने उन्हें ‘महात्मा’ का खिताब से सम्बोधित किया था।  

    ऐसे महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले का 28 नवम्बर, 1890 को निधन हो गया। नारी उत्थान, नारी के लिए समान अधिकारों की मांग उठाने वाले, नारी शिक्षा व दलितों शोषित वर्ग के लिए आवाज उठाने के लिए एक महान समाज सुधारक के रूप में वे हमेशा याद किए जाएंगे। उनके व अन्य समाज सुधारकों के प्रयासों से आज नारी पुरुष के समान शिक्षित व समाज में स्वतंत्रता से जीवनयापन कर रही है तथा अस्पृश्यता व जाति भेद पर भी अंकुश लगा है।

    कोई टिप्पणी नहीं