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    ओंकारेश्वर में भीषण गर्मी से तप रहा निमाड़, पारा 42 डिग्री सेल्सियस के पार, जानें आपके आराध्य ओंकारेश्वर कैसे रहेंगे कूल

    ओंकारेश्वर में भीषण गर्मी पड़ रही है. इसलिए यहां भगवान ओंकारेश्वर का ज्योतिर्लिंग भीषण गर्मी में शीतलता प्रदान कर रहा है। वैशाख की गर्मी के बीच यहां बर्तन रखे जाते हैं। शिवलिंग पर लगातार घड़ों से पानी गिरता रहेगा। जलधारा से भगवान को शीतल रखने का भाव है।






    मध्यप्रदेश समाचार : खंडवा - कहते हैं भगवान को अपने भक्तों की भावनाएं सबसे ज्यादा प्रिय होती हैं. इसका नजारा भी देखा जा सकता है. भीषण गर्मी के बीच खंडवा समेत निमाड़ में पारा 42 डिग्री के पार पहुंच गया है. ऐसे में ज्योतिर्लिंग भगवान ओंकारेश्वर को भीषण गर्मी में शीतलता प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। उज्जैन के बाद अब ओंकारेश्वर में भी मटकियां रखकर स्वयंभू भगवान ओंकारेश्वर को गर्मी से बचाने के जतन किए जा रहे हैं. देश के 12 ज्योतिर्लिंग में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान चौथा है. यहां वैशाख की गर्मी के बीच मटकियां रखी गईं हैं. शिवलिंग पर मटकियों से सतत जल आता रहेगा. इस जलधारा से भगवान को शीतल रखा जाएगा.


    गौरतलब है कि ओंकारेश्वर में साल भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। खासतौर पर गर्मियों में भगवान के साथ-साथ भक्तों का भी खास ख्याल रखना पड़ता है। ऐसे में मंदिर प्रबंधन समिति अलग-अलग व्यवस्था कर सभी को गर्मी से राहत दिलाने की कोशिश करती है. ओंकारेश्वर के पंडित नीलेश पुरोहित ने बताया कि ग्रीष्मकाल में भगवान ओंकारेश्वर को शीतलता प्रदान करने के लिए विशेष व्यवस्था करते हैं।भगवान भोलेनाथ हमारे आराध्य हैं. पर्वतों पर निवास करने वाले भगवान भोलेनाथ के लिए इस मौसम में शीतलता का प्रबंधन करना जरूरी है. यह मन का भाव है. भगवान मन के भाव ही देखते हैं. उन्हें ऊपरी काया से कोई मतलब नहीं


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    भगवान तीनों लोकों में भ्रमण करने के बाद यहीं विश्राम करते हैं।

    देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में ओंकारेश्वर का स्थान चौथा है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यहां 68 तीर्थ स्थल स्थित हैं और 33 करोड़ देवी-देवता अपने परिवार सहित यहां निवास करते हैं। ज्योतिर्लिंग की विशेषता यह है कि यह नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित है। यह जिस पर्वत पर स्थित है उसका आकार ॐ आकार का है। ऐसी भी मान्यता है कि तीनों लोकों में भ्रमण के बाद भगवान यहां विश्राम करते हैं. शयन आरती का महत्व भी यहां इसलिए अधिक माना गया है. ओंकारेश्वर की महिमा का उल्लेख पुराणों में स्कंद पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में भी माना गया है. सभी तीर्थों के दर्शन के बाद वहां के जल से भगवान ओंकारेश्वर को अर्पित करने पर ही तीर्थयात्रा को पूर्ण माना जाता है.


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