आधुनिक युग विज्ञान की आश्चर्यजनक प्रगति का युग है। विज्ञान मानव जीवन का अनिवार्य अंग बन गया है। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 28 फरवरी को नोबेल पुरस्कार से विभूषित महान वैज्ञानिक डॉ. चन्द्रशेखर वेंकट रमन के विज्ञान के क्षेत्र में ‘रमन प्रभाव’ की खोज के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य विज्ञान के प्रयोग द्वारा समाज में लोगों का जीवन स्तर सुधार कर उसे खुशहाल बनाना है। भारत सरकार ने १८ फरवरी १९८६ में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाने की घोषणा की थी।
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7 नवम्बर, 1888 को तमिलनाडु राज्य के तिरुच्चिरापल्ली नगर में जन्मे डॉ. सी.वी. रमन बचपन से मेधावी व परिश्रमी बालक थे। उन्होंने 12 वर्ष की आयु में मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से 1905 में बी.एससी. तथा 1907 में एमएससी. भौतिक विज्ञान में विशेष योग्यता हासिल कर उत्तीर्ण की। एमएससी. परीक्षा उत्तीर्ण कर वे कलकत्ता में सहायक लेखापाल के पद पर नियुक्त हुए। उनके इस पद पर नियुक्त होने पर उनका विज्ञान प्रेम कम नहीं हुआ और वे ‘भारतीय विज्ञान परिषद्’ की प्रयोगशाला में देर रात तक प्रयोग करते रहते थे। उनका अनुसंधान कंपन तथा शब्द विज्ञान विषयों पर आधारित था।
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उन्होंने वीणा, मृदंग, तानपुरा आदि वाद्य यंत्रों तथा वायलिन, पियानो आदि यंत्रों पर खोज कर नवीन मौलिक सिद्धान्त बनाए व संगीत एवं वाद्य यंत्रों के विषय पर अनेक पुस्तकें लिखी व कई यंत्रों का आविष्कार किया। उन्होंने 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। सन् 1917 से 1921 तक वे प्रकृति के रंगों के अध्ययन एवं विश्लेषण में लगे रहे। उन्होंने ‘प्रकाश’ के सम्बन्ध में अनुसंधान कर यह सिद्ध किया कि तरल व पारदर्शी पदार्थों से विसरित होने से प्रकाश का रंग बदल जाता है।
सन् 1921 में रमन कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में लंदन गये। इस विदेश यात्रा के दौरान उन्होंने समुद्र के बदलते रंग पर विचार मंथन किया। वे समुद्र के गहरे नीलेपन पर अध्ययन करते रहे तथा सात वर्षों के अथक परिश्रम व प्रयोग के बाद उन्होंने इस रहस्य को खोज निकाला, जिसे ‘रमन प्रभाव’ के नाम से जाना जाता है। जब एक रंगी प्रकाश की किरण किसी पारदर्शी पदार्थ से गुजरती है तो उस किरण का कुछ भाग अपने मार्ग से विसरित हो जाता है। इस विसरित प्रकाश की तरंग की लम्बाई प्रारम्भिक प्रकाश की तरंग लम्बाई से भिन्न होती है, जिसके कारण इसका रंग भी प्रारम्भिक प्रकाश के रंग से भिन्न होता है। इस महत्वपूर्ण खोज पर उन्हें 1930 में विश्व का सर्वोच्च ‘नोबल पुरस्कार’ प्रदान किया गया, जो भौतिक विज्ञान में सम्पूर्ण एशिया में सबसे पहला नोबेल पुरस्कार था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि देकर सम्मानित किया।
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सन् 1933 में भारत सरकार ने उन्हें ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साईंस बैंगलोर’ का संचालक नियुक्त किया। रमन जी के प्रयासों से ‘भारतीय विज्ञान अकादमी’ की स्थापना की गई। 1943 में उन्होंने ‘रमन अध्ययन संस्थान’ की स्थापना की। वे अपना पूरा समय अध्ययन में व्यतीत करते थे तथा मानव हित में विज्ञान की खोज में लगे रहे। सी.वी. रमन की भारतीय धर्म व संस्कृति में गहरी आस्था थी। डॉ. रमन के जीवन का आदर्श ‘सादा जीवन एवं उच्च विचार’ था, उन्होंने सारी सम्पत्ति ‘रमन संस्थान’ को दान कर दी थी। उन्होंने महाभारत, रामायण जैसे ग्रन्थों को भी पढ़ा। वे विज्ञान के अतिरिक्त अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, इतिहास व संस्कृत के ज्ञाता थे। सन् 1954 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया।
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डॉ. वेंकटरमन ने अणुओं के चुंबकीय गुणों का विशेष रूप से अध्ययन किया और विभिन्न पदार्थों के अणुओं के बारे में महत्वपूर्ण बातें ज्ञात की। उन्होंने चुम्बकीय शक्ति, एक्स किरणें, समुद्र जल और वर्ण तथा ध्वनि पर अनुसंधान किये। उन्होंने आँख के ‘रेटिना’ को देखने के लिए एक यंत्र बनाया। उन्होंने रेटिना में तीन रंगों की खोज की व इन रंगों के कार्य, उनके प्रभाव एवं पहचान का भी पता लगाया।
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डॉ. रमन के प्रयोग सदैव शांति व जन कल्याण के थे तथा वे युद्ध कार्य के पक्ष में नहीं थे। विश्व कल्याण की कामना रखने की भावना से ‘सोवियत संघ’ रूस सरकार ने 1957 में उन्हें ‘लेनिन शांति पुरस्कार’ से सम्मानित किया। ऐसे महान वैज्ञानिक का 21 नवम्बर, 1970 में 82 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया। विज्ञान के क्षेत्र में उनकी देन को सदियों तक याद किया जाएगा। वेंकटरमन जैसे वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर याद किया जाता है।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर एक राष्ट्रीय थीम निर्धारित किया जाता है। वर्ष २००० का थीम बुनियादी विज्ञान में फिर से रूचि पैदा करना’’ था। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस वर्ष २०१८ का थीम ‘‘एक स्थायी भविष्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी’’ निर्धारित किया गया था। वर्ष 2019 का थीम ‘‘लोगों के लिए विज्ञान और विज्ञान के लिए लोग’’ था। वर्ष 2020 का राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का थीम ‘‘वीमैन इन साइंस’’ रखा गया था एवं वर्ष 2021 का राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का थीम ‘‘फ्यूचर ऑफ साइंस टेक्नोलॉजी एण्ड इनोवेशन, इंपैक्ट ऑफ एज्युकेशन स्किल एण्ड वर्क’’ था। वर्ष 2022 का थीम ‘‘दीर्घकालिक भविष्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एकीकृत दृष्टिकोण’’ रखा गया था। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस वर्ष २०२३ का थीम ‘‘वैश्विक कल्याण के लिए वैश्विक विज्ञान’’ निर्धारित किया गया। वर्ष 2024 का थीम ‘‘विकसित भारत के लिए स्वदेशी तकनीक’’ था। वर्ष 2025 का राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का थीम इस वर्ष विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग ने ‘विकसित भारत के लिए विज्ञान और नवाचार मे वैश्विक नेतृत्व के लिए भारतीय युवाओं को सशक्त बनाना’ रखा गया है।
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राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर निर्धारित किए गए थीम पर विद्यालय, कॉलेज व वैज्ञानिक शोध संस्थानों में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें किसी भी स्तर के विद्यार्थी भाग ले सकते हैं, इनमें उत्कृष्ट विद्यार्थियों को सम्मानित किया जाता है। इसके साथ-साथ राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विद्यालयों, कॉलेजों व अनेक संस्थाओं द्वारा विज्ञान पर गोष्ठियां, सेमिनार, पत्रवाचन एवं प्रतियोगिताओं व विभिन्न वैज्ञानिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। उभरते बाल एवं युवा वैज्ञानिकों को उनकी उपलब्धियों व शोध कार्यों के लिए पुरस्कृत किया जाता है। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाने से विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति अभिरुचि जागृत होती है। विज्ञान की मानव को देन व उन महान वैज्ञानिकों जिन्होंने देश के विकास में योगदान दिया है,
जिनके प्रयासों से आवागमन, संचार साधनों, उद्योग, व्यापार व कृषि के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति हुई है, उन्हें आज के दिन याद किया जाता है। आज विज्ञान का बोलबाला है, मोबाइल, इंटरनेट, कंप्यूटर के द्वारा हम देश-विदेश की खबरों की जानकारी व ई-कॉमर्स द्वारा घर बैठे व्यापार कर लेते हैं। हजारों किलोमीटर की दूरी हवाई जहाज द्वारा घंटों में तय कर लेते हैं, ये सभी विज्ञान की देन है। भारतीय वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर उनके आविष्कारों के लिए याद किया जाता है।
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भारत के प्रमुख वैज्ञानिकों सर आइजक न्यूटन, डॉ. होमी जहांगीर भाभा, डॉ. ए.एस. राव, डॉ. वी. रामचन्द राव, डॉ. सुब्रह्मण्यम चन्द्रशेखर, डॉ. गणेश प्रसाद, डॉ. रासबिहारी अरोड़ा, बीरबल साहनी, डॉ. हरगोविन्द खुराना, पंचानन माहेश्वरी, मेघनाद साहा, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम महान वैज्ञानिक व पूर्व राष्ट्रपति जिन्हें ‘मिसाईलमैन’ के नाम से जाना जाता है, आयुर्वेदिक विज्ञान के दाता के रूप में जाने गये ‘धनवन्तरि’ जिन्हें आयुर्वेदिक औषधियों की खोज के लिए स्मरण किया जाता है। डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरमन जैसे उन महान वैज्ञानिकों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना व उनके शोध कार्यों के प्रति अपने भाव व्यक्त करना ही राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाने की सार्थकता होगी। सभी देशवासियों को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की शुभकामनाएं।
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